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टूटी भोजन की आस…रोता बच्चा

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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बीच मझधार फंसे
मजदूर,
साथ में बीबी-बच्चे,
भूखे-प्यासे,
सर पे गठरी
सूखी ठठरी,
घर की आस
बड़ी बाधाएं,
कहां जाएं
काम न काज,
`कोरोना` का राज,
फंसे परदेस
सरकारी आदेश,
जहां हैं वहीं रहें पड़े
चाहे भूख से तड़पना पड़े,
हुई मुनादी
कल बसें चलेंगी,
जान में आई जान
उठाया सामान,
बढ़ती भीड़
हुआ लाठीचार्ज,
झूठी थी खबर
हुए बेघर,
चले पैदल-पैदल
उसकी भी मनाही,
रुकी आवाजाही
हुई शाम फिर रात,
टूटी भोजन की आस
रोता बच्चा,
फटता माँ का कलेजा
निस्तेज शरीर,
सूखी आँतें
बच्चा चूसता स्तन,
न निकले दूध
न पानी,
काट खाया जैसे
बिल्ली खिसियानी,
चीखी माँ…
देखा बहता रुधिर,
हुई मूक-बधिर
सहलाया बच्चे का सर,
मजबूरन ठूंस दिया
बच्चे के मुँह में,
कटा स्तन
बच्चा पीते-पीते
सो गया,
लो उठो भोर हो गया
चारों तरफ शोर हो गया,
भोर हो गया।

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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