जल ही कल का हर इक जीवन

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ********************************************* जल ही कल.... जल ही कल का हर इक जीवन, जल से ही यह धरती उपवन।अम्बर से जल बरसे तब ही, सजते हैं सारे…

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इंसान की तक़दीर

मुकेश कुमार मोदीबीकानेर (राजस्थान)************************************************** पापकर्मों के समापन की, करनी होगी शुरुआत,वरना पाते रहेंगे हम, दु:ख-दर्द के अनेक आघात। झांको जरा अन्तर्मन में, प्रत्येक दिन का अतीत,कैसी-कैसी मुश्किलों में, ये जीवन…

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दर्द

संजय एम. वासनिकमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************* वह अपने दर्द को,दवा से दबा देती हैवो भी अपने दर्द को,सहने की कोशिशकरता रहता है,कमरे के एक हीपलंग पर दोनोंअपनी-अपनी जगह सोए पड़े रहते हैं…दर्द…

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देख उसे मन में आनंदा

दिनेश कुमार प्रजापत ‘तूफानी’दौसा(राजस्थान)***************************************** रचनाशिल्प:यह विधा ४ पंक्तियों की रचना, विधा में २ सखियाँ परस्पर वार्तालाप करती है, प्रथम ३ पंक्तियों में एक सखी दूसरी अंतरंग सखी से अपने साजन-पति…

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जीवन नहीं बचेगा…

अमल श्रीवास्तव बिलासपुर(छत्तीसगढ़) *********************************** जल ही कल.... यों तो पानी के महत्व को,सभी बखूबी जान रहेजल बिन जीवन नहीं बचेगा,इसको भी सब मान रहे। पर पानी के दुरुपयोग से,हालत दिन-प्रति बिगड़…

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पेड़ों की महत्ता

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)****************************************** दूषित धारा को करने वालों, कुदरत का कहर तो बरपेगा,दूसरों के दर्द से दर्द न होगा, निज पीड़ा से आँसू ढरकेगा। इन मौन गगन को चूमने…

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गुलशन बना गया कोई

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’कानपुर(उत्तर प्रदेश)********************************************* प्यार के गुल खिला गया कोई।दिल को गुलशन बना गया कोई। बात दिल की ज़बां पे आ न सकी,हाथ आकर दबा गया कोई। बात…

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सूरज दादा

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयीजबलपुर (मध्यप्रदेश)*********************************** ऐ सूरज दादा सूरज दादा,खतरनाक इस बार इरादा। उगल रहे हो कितनी आग,लगता जल्दी घर को भाग। धूप से ऐसी गर्मी बरसे,मन ठंडा पीने को…

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शब्दों का करना उपयोग जरा सम्भाल कर

वंदना जैनमुम्बई(महाराष्ट्र)************************************ शब्द उड़ कर खो न जाएं,जेबों में रखिएगा संभाल करअदाएं हैं इनकी निराली,अदाओं से रहिएगा बच कर। कभी चीखते हैं क्रोध से,कभी घावों की टीस बनते हैंये बहने…

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विधुनी…

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** जलती रही,पिघलती भी रहीजमती रही,हर सांचे मेंमोम मानिंद बन,ढलती रही। दंड स्त्री जन्म,भावना कुचलतीपलती रही,मौन निःशब्दस्वयं में उलझतीतकती रही। सिमटती-सी,भीतर बिखरतीधरती रही,क्षीण तन सेतृण तृण झरतीगलती रही।…

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