क्या तुझे भी दीवाना याद आता है…
सलिल सरोज नौलागढ़ (बिहार) ******************************************************************** कोई क़यामत न कोई करीना याद आता है। जब दुपट्टे से तेरा मुँह छिपाना याद आता है। एक लिहाफ में सिमटी न जाने कितनी रातें, यक ब यक दिसम्बर का महीना याद आता है। ज़ुल्फ़ की पेंचों में छिपा तेरा शफ्फाक चेहरा, किसी भँवर में पेशतर सफीना याद आता है। … Read more