पीड़ा

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** जो कहा उस ओर क्यों बढ़ा ही नहीं। जो लिखा पत्र तुम्हें वो पढ़ा ही नहीं॥ मेरा जीवन एक निष्पक्ष कड़ा संघर्ष,…

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होली चालीसा

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* दोहा- याद करें प्रल्हाद को,भले भलाई प्रीत। तजें बुराई मानवी,यही होलिका रीत॥ चौपाई- हे शिव सुत गौरी के नंदन। करूँ आपका नित अभिनंदन॥ मातु शारदे वंदन…

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इक विश्वास था…

डॉ.रीता जैन’रीता’ इंदौर(मध्यप्रदेश) *************************************************** मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा थाl उस दिन सफर से लौटकर मैं…

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बिखरे रंग

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** होली के त्यौहार में,देखो बिखरे रंग। जगह-जगह पर धूम है,गले मिले हैं संग॥ नीली पीली लालिमा,रंगों की बरसात। जमीं आसमां लाल है,दिल तो…

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पसीने की पुकार

उमेशचन्द यादव बलिया (उत्तरप्रदेश)  *************************************************** चलते हुए राह पर हमने सुना एक बड़ा चमत्कार, झलकी बूँद भाल पर जल की पसीने ने की एक पुकार। गिरने मत देना यूँ ही…

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कविता का जन्म

मनोरमा जोशी ‘मनु’  इंदौर(मध्यप्रदेश)  **************************************************** अबाध गति से अनजाने में, निशब्द भावनाओं का प्रवाह मानस पटल पर अंकित कुछ, अनबोले और अनछुए असंख्य विचार कल्पना का, मंथन कर उद्धेलित करते…

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१९वीं शताब्दी में ही भारतीय संस्कृति और भाषाओं के प्रति काफी रुचि बढ़ गई थी रूस में

मास्को विश्वविद्यालय की प्रो.डॉ.खोखलोवा ने कहा अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी:रूस के संदर्भ में पर व्याख्यान में गुरुग्राम (हरियाणा)l पंद्रहवीं शताब्दी में रूस में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि…

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रंग ले के आयी होली

अवधेश कुमार ‘आशुतोष’ खगड़िया (बिहार) **************************************************************************** रंग ले के आयी होली,अँखियों से मारे गोली। गोरियों की भींगे चोली,रंग की फुहार में। जिसका भी देखो गाल,रंग से रँगा है लाल। टोली…

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होलिका दहन

निर्मल कुमार जैन ‘नीर’  उदयपुर (राजस्थान) ************************************************************ पर्व अनूठा होलिका दहन का, कोई न रूठा। बजे मृदंग मिल के खेलें हम, होली के रंग। गौरी के गाल कोई मल नहीं…

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कहाँ खो गए वो ढोल-मंजीरे..वो गीत..

डॉ. स्वयंभू शलभ रक्सौल (बिहार) ****************************************************** हमारे देश के व्रत-त्योहार हमारी गौरवशाली परम्परा और संस्कृति का दर्पण हैं। देश की अनेकता में एकता की जो झाँकी दिखाई देती है उसमें…

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