जीवन का संग्राम बहुत है
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* द्वंद्व करूँ क्या अधम मृत्यु से, जीवन का संग्राम बहुत है। क्षण-क्षण आते आँधी-पानी, पल-पल उठते यहाँ बवंडर चाहें कि उपजाऊ बगिया, बनती रेगिस्तानी बंजर। कितने सपने आतप देंगे, एक सूर्य का घाम बहुत है। लड़ते-लड़ते चली यहाँ तक, लड़ते-लड़ते आगे जाना समझ लिया मैंने है जीवन, संघर्षों का ताना-बाना। तानों-बानों … Read more