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चार लोगों ने कहा…..

अनुपम आलोक
उन्नाव(उत्तरप्रदेश)
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चार लोगों ने कहा..हम,
चार पग फिर बढ़ गए।

चार युग की व्यंजना में,
काल-कलि हमको मिला।
चार ॠतुओं में विहरने,
का मिला हमको सिला।

चार दिन की जिंदगी में,
स्वप्न कितने गढ़ गए।

वेद चारों भूलकर..बस,
अहं रसवंती हुआ।
हरित शैशव,पीत यौवन,
प्रौढ़ बासंती हुआ।

फिर विवश से वृद्धपन पर,
रंग भूरे चढ़ गए।

चार-चौथेपन में आँखें,
हो गयीं जब काल से।
तब समझ पाया…कि,
चारोंपन गए बेहाल से।

चार काँधे! उम्रभर के,
पाप मेरे पढ़ गए॥

परिचय-अनुपम ‘आलोक’ की साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि है। अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ का जन्म १९६१ में हुआ है। बाँगरमऊ,जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मोहल्ला चौधराना निवासी श्री सिंह ने वातानुकूलन तकनीक में डिप्लोमा की शिक्षा ली है। काव्य की लगभग सभी विधाओं में आप लिखते हैं। गीत,मुक्तक व दोहा में विशेष रुचि है। आपकी प्रमुख कृतियाँ-तन दोहा मन मुक्तिका,अधूरी ग़ज़ल(साझा संकलन)आदि हैं। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको सम्मान में साहित्य भूषण,मुक्तक प्रदीप,मुक्तक गौरव,मुक्तक शास्त्री,कुण्डलनी भूषण, साहित्य गौरव,काव्य गौरव सहित २४ से अधिक सम्मान हासिल हुए हैं।

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