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कोरोनाःवियतनाम से सीखें सभी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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क्या दुनिया में कोई ऐसा भी देश है,जहां ‘कोरोना’ की वजह से अब तक एक भी आदमी मरा न हो ? जी हाँ,ऐसा एक देश है,जिसका नाम वियतनाम है। लगभग साढ़े ९ करोड़ की जनसंख्यावाला यह देश चीन का एकदम पड़ौसी है। यह साम्यवादी पार्टी द्वारा शासित देश है। इसके नेता हो ची मिन्ह की गिनती दुनिया के बड़े नेताओं में हुआ करती थी। यह देश सिंगापुर,ताइवान और द.कोरिया जैसा
सम्पन्न देश नहीं है लेकिन उसने कोरोना को जैसी टक्कर दी है,वैसी कोई और देश उसे नहीं दे सका है। जनवरी से अभी तक इस देश में २७० मामले सामने आए हैं,और उनमें से २२० ठीक हो चुके हैं। ५० लोगों का इलाज चल रहा है। वियतनाम से भी कम आबादी वाले और चीन से बहुत दूर बसनेवाले यूरोपीय देशों और अमेरिका में हजारों आदमी मर रहे हैं और लाखों लोग कोरोना के शिकार हो रहे हैं, ऐसी हालत में वियतनाम की जनता पर तालाबंदी नहीं थुपी हुई है और वहां सामान्य काम-काज यथावत चल रहा है।
इसका रहस्य क्या है ? वियतनाम में चीन से आए २ व्यक्तियों में २३ जनवरी को कोरोना के लक्षण पाए गए लेकिन सरकार ने १६ जनवरी को ही सारे देश को सावधान कर दिया था। वे लोग १३ जनवरी को राजधानी में आ गए थे। लगभग इसी समय हमारे केरल में भी कोरोना का एक मामला पकड़ा गया लेकिन हमारी सरकारें खर्राटे खींचती रहीं। केन्द्र सरकार ने लगभग दो-ढाई माह बाद तालाबंदी की घोषणा की। यदि हमारी केन्द्र और राज्य सरकारें जनवरी में ही सतर्क हो जातीं और विदेशों से आने वालों पर कड़ी नज़र रखतीं तो भारत भी दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाता। वियतनाम के पास न तो पर्याप्त जांच-यंत्र हैं,न साँस यंत्र हैं और न ही दवाइयां हैं लेकिन फिर भी उसने कोरोना पर काबू इसलिए कर लिया कि विदेश से आनेवाला कोई भी व्यक्ति या उसके संपर्क में आनेवाला व्यक्ति वहां तबलीगी जमात के लोगों की तरह छिपा नहीं रहा। कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचा दिया। वियतनाम में एक-पार्टी शासन होने के बावजूद चीन की तरह अंतरजाल और मीडिया पर सरकारी शिकंजा नहीं है। सरकार ने गली-गली और घर-घर में पोस्टर लगाकर,रेडियो,टी.वी. और अखबारों में विज्ञापन देकर कोरोना को ‘राष्ट्रीय शत्रु’ घोषित कर दिया। कई शहरों,गाँवों और मोहल्लों में थोड़े समय के लिए उसने जबर्दस्त तालाबंदी लागू जरुर की,लेकिन पूरे वियतनाम को बंद नहीं किया। अब वह सहज जीवन की तरफ लौटता जा रहा है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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