कुल पृष्ठ दर्शन : 228

मानसिक संकीर्णता से बचना होगा

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*********************************************

बुद्धिजीवी मेडिकल एसोसिएशन की मान्यता है कि,पूरे विश्व के साथ भारत में आधुनिक चिकित्सा का वर्चस्व रहे और होना भी चाहिए। कारण एलॉपथी सरकार की दत्तक पुत्र होने से मुख्य धारा से जुड़ी है,और कहावत है मूल से ब्याज अधिक प्यारा होता है। इन बुद्धिजीवी को जन्म के समय से ही देशी दवाएं दी गई थी,जैसे शेर मांसाहारी होने के बाद भी वह अपने बच्चे को दूध ही पिलाती है,ना कि खून।
आयुर्वेद को समझने के लिए आयुर्वेद की विचारधारा को समझना होगा। आयुर्वेद जड़ी-बूटी का शास्त्र नहीं हैं,बल्कि यह एक जीवन पद्धति है जिसके द्वारा आप जीवन किस प्रकार सुखद और शांतिकारक बना सकते हैं। आयुर्वेद दो शब्दों से बना हैं आयु और वेद। आयु यानी शरीर,आत्मा,मन और इन्द्रियों के संयोग को आयु कहते हैं और जिस शास्त्र में इनका ज्ञान मिलता है उसे वेद या विज्ञान कहते हैं। जब देश में हिन्दीकरण का जोर चल रहा था,तब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का नामकरण को लेकर बहुत भ्रांतियां थी,कोई कहे इसका नाम चिकित्सा संस्थान रखा जाए,कोई शल्य संस्थान। तत्समय के सांसद पंडित शिव शर्मा जी ने सलाह दी कि,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का नाम आयुर्वेद संस्थान रखा जाए।
आज भी स्वास्थ्य की परिभाषा अपने आप में अद्वितीय है। ‘समदोषः समाग्नि सम धातु मलाः क्रियाः,प्रसन्ने आत्मेन्द्रियः मनः स्वस्थ्य इत्याभीयते।’ यानी जब शरीर में दोष,धातु मल और अग्नि समान अवस्था में हों और इसके साथ जिनकी आत्मा, इन्द्रिय मन स्वस्थ्य होगें तभी वह स्वस्थ कहलाएगा। इससे सम्पूर्ण संस्थान की सार्थकता पूरी होती है।

संसार की प्रत्येक वस्तु औषधियां है,इसके अलावा कुछ नहीं। इसी प्रकार जिस देश की औषधियां उसी देश के निवासियों को लाभकारी होती है। इसी प्रकार ‘रोगस्तु दोष वैश्य्म’ दोष साम्यम आरोग्यता, यानी दोषों की विषमता रोग है और समानावस्था में लाना चिकित्सा है। आज भी आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में हजारों हजार सूत्र हाजिर हैं,जिनके लिए कोई भी अनुसन्धान-शोध की जरुरत नहीं है,बस उनको खुले हृदय से अपनाने की जरुरत है।
आज भी एसोसिएशन के सदस्य या कोई बड़ा से बाद एलॉपथी का चिकित्सक भी काढ़ा आदि का उपयोग कर रहे हैं। क्या एलॉपथी चिकित्सक अन्न की जगह रसायन का उपयोग कर रहे हैं। मल्टी विटामिन्स,ज़िंक,कैल्शियम आदि के लिए आहार दूध,घी,फल-फूल का उपयोग क्यों करते हैं। विश्व में अन्न का अपना महत्व हैं,पर विवाद का विषय श्रेष्ठता पर है। आज भी चिकित्सा सिद्धांत,शल्य के सिद्धांत आयुर्वेद पर निर्भर करते हैं। आचार्य चरक और आचार्य सुश्रुत द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी उतने कारगर हैं,जैसे पहले थे। चिकित्सा का अर्थ मानव या पशुओं को रोग मुक्त करना। चिकित्सा को आप किसी भी सीमा में नहीं बाँध सकते।
चिकित्सा में जिस पद्धति जो उपयोगी, मानवहितकारी हो उनको स्वीकारना चाहिए। कोई भी भाषा जाति,धर्म,जब तक उसको राजाश्रय प्राप्त नहीं होता तब तक फलता-फूलता नहीं हैं। आज सरकारों द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को मान्यता देने से एलॉपथी चिकित्सक के पेट में दर्द होने लगा। कृमि रोग होने लगा,जबकि यह प्रसन्नता का विषय होना चाहिए कि, आयुर्वेद जो भूली-बिसरी हो गई थी,उसे भी मान्यता मिलने लगी, उपेक्षित नहीं रहेगी,मुख्य धारा में आ रही है,और सौतन नहीं रही उसे भी बराबरी का हक़ मिलने लगा। यह द्वेषता उनकी संकीर्ण मानसिकता का घोतक है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply