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आदत है हमें

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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आदत है हमें,
कहकर भूल जाने की
वादों से मुकर जाने की,
हर चीज़ में मिलावट करने की
झूठ को सच और,
सच को झूठ दिखाने की
वफ़ा की कसम देकर बेवफाई करने की।

आदत है हमें,
अफवाहों का बाजार गर्म करने की
जलती चिता पर रोटी सेकने की,
सिर्फ अपना और सिर्फ
अपने लिए सोचने की,
दंगे-फसाद में अपना फायदा देखने की
इंसानियत को सूली पर चढ़ाने की।

आदत है हमें,
मानवीय मूल्यों को बेच खाने की
संवेदनाओं को ताक पर रख देने की,
मासूम लोगों पर अत्याचार करने की
अपना जमीर तक गिरवी रखने की,
पैसों की खातिर ईमानदारी छोड़ने की
आखिर कब तक ?
कब तक इंसानियत भूलेंगे,
कब तक जुल्म करेंगे सहेंगे ?

अब और नहीं,जागो इंसान,
अपना मूल्यांकन करो
समझो अपने आपको,
जब तक है इंसानियत
तभी तक इंसान है जिंदा।
वरना पशु और इंसान में,
क्या फर्क है…क्या फर्क है॥

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