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माँ की ममता

मयंक वर्मा ‘निमिशाम्’ 
गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

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मेरी फरमाइशों के पकवान बनाती थी हर रोज,
तेरे माथे पर कभी रसोई की गर्मी की शिकन नहीं होती।
खाया है बड़ी नामी-गिरामी जगहों पर भोज,
पर उन सबमें तेरे हाथों-सी मिठास नहीं होती।

मेरी गलतियों को शरारत का नाम देती रही,
तेरी आँखों की हामी के बाद फिक्र नहीं होती।
मेरी हर नाकामी में भी उम्मीद जगाती रही,
तेरे आँचल में छुपकर कोई परवाह नहीं होती।

मेरी पढ़ाई कराने को खुद पढ़कर मुझे पढ़ाती थी,
तेरे त्याग और तपस्या के बिना मेरी शिक्षा पूरी नहीं होती।
किस्से-कहानियां कहकर संसार की रीत सिखाती थी,
हर बात में मकसद रहता था,वो अधूरी नहीं होती।

मारा तो तुमने भी है कई बार न जाने किस-किस चीज़ से,
पर उन हल्के हाथों की मार में वो लंबी टीस नहीं होती।
समझाई है दुनियादारी,कभी गुस्से-कभी तमीज़ से,
तेरी सीख की आज़माइश आज भी कम नहीं होती।

मेरे भले के लिए,कभी सबसे-कभी मुझसे लड़ती रही,
गुज़रे वक्त की बातों में भी मेरी हिमायतें कम नहीं होती।
दूर रहकर भी मेरे हर सुख-दु:ख की खैर-खबर लेती रही,
फ़ोन पर ही सही मगर तेरी हिदायतें कम नहीं होती।

गोद में सर रखकर मेरा पाँव हिलाती रहती थी।
इन महंगे गद्दे,तकियों में लेकिन वो राहत नहीं होती।
मेरे सो जाने तक जागकर थपकियां देती रहती थी,
इन बेफिजूल के मसलों में अब आँखें बंद नहीं होती।

उंगली पकड़ने से कदम मिला कर चलने तक का सफ़र,
तेरे जले बिना मेरी जीवन ज्योत रौशन नहीं होती।
बदन में दर्द रहता है,ठीक से चल नहीं पाती मगर,
कहने भर से मेरे पास आने को तेरी हिम्मत कम नहीं होती।

घुटनों से चलते थे आज अपने पैरों पर खड़े हैं,
मेरे खाने की चिंता तेरे मन में कभी कम नहीं होती।
दुनिया की नज़रों में हम चाहे कितने ही बड़े हैं,
माँ तेरी ममता मगर,आज भी कम नहीं होती॥

परिचय-मयंक वर्मा का वर्तमान निवास नई दिल्ली स्थित वायुसेना बाद (तुगलकाबाद)एवं स्थाई पता मुरादनगर,(ज़िला-गाजियाबाद,उत्तर प्रदेश)है। उपनाम ‘निमिशाम्’ है। १० दिसम्बर १९७९ को मेरठ में आपका जन्म हुआ है। हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा जानने वाले श्री वर्मा ने बी. टेक. की शिक्षा प्राप्त की है। नई दिल्ली प्रदेश के मयंक वर्मा का कार्यक्षेत्र-नौकरी(सरकारी) है। इनकी लेखन विधा-कविता है। लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों की अभिव्यक्ति है। पसंदीदा हिंदी लेखक व प्रेरणापुंज डॉ. पूजा अलापुरिया(महाराष्ट्र)हैं।

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