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छटपटाती जिंदगी-को थोड़ा थाम लो

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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इन दिनों प्रकृति है छटपटा रही,
हवाएं छटपटा रही
बढ़ती हुई यह शहर की अस्मिता है छटपटा रही।
बहुत ख़ौफ़ में गुजर रही है-यह जिंदगी…
खोए-खोए से आँखों के वो सपने,
पथराई-सी ऊबती हुई यह जिंदगी
सुनसान पथ,सूखे पत्तों की सरसराहट,
हृदय में बढ़ता कम्पन
यह अप्रत्याशित,वीभत्स महामारी ने जिंदगी को
मौन बना दिया।
अशांत मन,उलझी हुई मानसिकता…
खोया है हर पथिक,
मार्ग है अवरुद्ध,बैठा है थक हार
यह शहर का झरझराता मौन,
चीखता सन्नाटा,यह हृदय का बढ़ता हुआ कोलाहल
जीवन को जीने की चाह लिए ललचाता है।
यह संजीदा सुबह,उदास शाम,
शहर की शीतल हवा मानो
विक्षिप्त हो गयी हो।
नित-प्रतिदिन कौंधता यह विचार-
कब थमेगा…,
मृत्यु का यह तांडव ?
वो शहर जिसकी सांझ बहुत
बहुत सुकून देती थी,
उसकी स्मृतियां मन को अब झकझोर देती है।
कहते हैं-
सब किसी
विषाणु के खौफ से डगमगा रहा है यह संसार।
रखो धैर्य,हे! प्राणी
अपने हृदय से यह भय,आशंका को त्यागो,
वो भोर भी होगी,जब सम्पूर्ण वसुंधरा इससे मुक्त होगी।
वो सांझ भी फिर होगी,
जिसके रंगीन आँचल में हम पुनः
सुख स्वप्न को बुनेंगे,
बस थोड़ा-सा अपने कदमों को थाम लो….
अपने घरोंदे में॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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