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हे दयामय रसराज

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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हे प्याज,हे रस सागर,
विख्यात हैं आप भूमण्डल में
जिनको मिला है स्वाद वही जाने-
मूल्य आपका रतनों से परे।

अति उज्ज्वल वर्ण है आपका,
सुपुष्ट है देह कांति
जब खिलते हैं आपके फूल-
वह भी बड़ी स्वादिष्ट,नाम जिसका प्याज कली।

है महासाधक,महाज्ञानी,
माया के जग में मायाहीन आप अनित्य
‘जन्म लिए शून्य हाथ से,अंत में भी वही शून्य’-
जिसका प्रमाण दिया ही आपने,शाश्वत वाणी ही सत्य।

कितने योग साधन से अर्जन किये आप पुण्य,
निज शरीर का परत पर परत छिलके झराकर
दिखाए आप,अंत पर सब ही होगी महाशून्य-
निज इच्छाओं से आप कभी सुलभ,फिर दुर्मूल्य।

अब सोंचता हूँ महोदय,
कितने चैन से है वो लोग संसार में,
जिन लोगों को आप रखे हो अनछुए-
संसार में ऐसे हैं,अनेक सम्प्रदाय।

हमलोग जो हैं कृपाधन्य,आपकी कृपा से,
आपका अमृत स्वाद आस्वादन किये,हे दयामय,
झोला ले कर ढूँढता हूँ आपको यहां-वहां-
दुर्मूल्य नहीं देता है छूने आपको,है कृपामय।

हे दयामय रसराज,
कृपा कीजिए बनकर सुलभ धरातल में,
अमृत के स्वाद से आपकी सन्तान वंचित हुई आज-
प्रार्थना कर प्रणाम अर्पण आपके श्रीचरण तले॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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