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वक्त की दरकार

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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वक्त की दरकार है,
वक्त को समझो तो बेड़ा पार है।
वक्त ही वक्त आने पर,
तरह-तरह का एहसास करा देता है।
वक्त भी न जाने कब मुझे,
यह कैसी पहेली दे गया है।
उलझ कर रह जाने को जिंदगी,
समझने को सारी उम्र दे गया है॥

सब ने खूब समझाया हमको,
वक्त आने पर वक्त बदल जाता है।
जिन्दगी को समझा यारों!
हमने जब बहुत ही करीब से।
न जाने कौन-कौन मिला जहां में,
हमको हमारे ही नसीब से।
वक्त ने कराया एहसास,
वक्त आने पर इंसान ही बदल जाता है॥

वक्त तो वक्त है,गूंगा नहीं,
बस मौन ही मौन है।
वक्त ही वक्त आने पर बता देगा,
यहाँ किसका कौन है।
जिसने समझा नहीं वक्त को,
वो अक्सर ही झुक जाता है।
गर बच भी गया तलवार से,
तो फूल से ही कट जाता है॥

कारण कुछ भी नहीं था बचपन में,
हम अकारण ही मुस्कराते थे।
अब बड़े होने पर देखो,
मुस्कराने का कारण ही छिपा लेते हैं।
न जाने हमारी पेशानी में,
अब ये कैसी-कैसी परेशानियां हैं।
तभी तो गम के गद्दों पर,
खुशी के फूलों की चादर ही सजा देते हैं॥

आज हम जो हर वक्त,
दौलत के साये में इतने मगरूर रहते हैं।
दुनिया घूमती है आगे-पीछे,
न जाने कौन-कौन सलाम करते हैं।
अंत में रह जाएगी अपनी,
सिर्फ एक सफेद चादर की औकात।
खुद न उसे न हिला,न डुला पाएंगे,
न कर पाएंगे कोई बात॥

नये-नये लिबासों का,
नई-नई पोशाकों का,हमको शौक था कितना।
जब कोई निहारता हमें,
हिकारत से,मन ही मन इतराते थे उतना।
हम रहते थे अपनी धुन में,
मानी कभी किसी की कोई सीख नहीं।
पर जब आया आखिरी वक्त,
कह भी न सके,यह कफ़न तो ठीक नहीं॥

जो हर समय रहते थे गरूर में,
न जाने कौन-सा फितूर था।
दर्प था,घमंड था,दिल में उनके
कुछ न कुछ तो जरूर था।
छत को था अहंकार अपने छत होने का,
सहसा यह क्या कहानी हो गई।
एक मंजिल और डली,
छत छत न रही,फर्श हो गई॥

वक्त ने बदल दिया,
अब वक्त को इतना ज्यादा।
अब हमारा वक्त भी हमारा नहीं रहा।
जब वक्त था,तब नहीं की,
हमने वक्त की कदर।
अब हालात बदल गए इस कदर,
अब कोई भी हमारा नहीं रहा॥

वक्त वक्त की बात है,
वक्त ने कब दिया सदा किसका साथ है।
जो वक्त के साथ चला,
मिलीं,उसको ही सब सौगात हैं।
वक्त की सच्चाई को,गहराई को,
जिसने दिल से महसूसा है।
वह रुका नहीं,झुका नहीं,
शान से हर बार,
मंजिल पर अपनी पहुंचा है॥

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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