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दरकती है…

मनोरमा जैन ‘पाखी’
भिंड(मध्यप्रदेश)
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टूटे काँच की किरचें चुभी हैं कभी,
टीसती है न हथेलियों में दरकती।

वो साँझ के धुंधलके में लाल साये,
और डूबता नारंगी-सा वह गोला।
आसमान पर सतरंगे हल्के गहरे,
जैसे ख्वाबों का सजा रंगीला डोला।
तब एक स्मृति पट खोल कर झांकती,
टीसती है न हथेलियों में दरकती॥

बचपन की परियों की कहानी-सी मासूम,
यौवन में चाँद से सीख लेती शरमाना।
सखियों संग अल्हड़-सी कर अठखेलियाँ,
फिर खौफ़ से स्वयं में ही सिमट जाना।
दिवस की इच्छित स्वामिनी विहँसती,
टीसती है न हथेलियों में दरकती॥

न,न…
तुमसे कब कुछ कहा था हमने ,
चाहा ही था कब कुछ जो तुमने।
पीर प्रीत बन प्याले में समाती,
दर्द की ओक से जो पी थी हमने।
अंजुली से कर आचमन थी बहती,
टीसती है न हथेलियाँ में दरकती॥

प्रणय में बेसुध हो छलकाए थे,
भरे हुए जब वो मय के प्याले।
शलभ संग जली रात भर शमाँ,
बहते रहे जल जल मोम धारे।
विरह व्यथित व्यंजित विफरती,
टीसती है न हथेलियों में दरकती॥

तोड़ दी सब वर्जनाएँ लो आज,
सृजित हुआ फिर वेदना संसार।
अक्षर-अक्षर जोड़ बनी दामिनी,
दिया फिर आज तुमने बिसार।
झंझा क्यों है झकोर झकोरती,
टीसती है न हथेलियों में दरकती॥

परिचय-श्रीमती मनोरमा जैन साहित्यिक उपनाम ‘पाखी’ लिखती हैं। जन्म तारीख ५ दिसम्बर १९६७ एवं जन्म स्थान भिंड(मध्यप्रदेश)है। आपका स्थाई निवास मेहगाँव,जिला भिंड है। शिक्षा एम.ए.(हिंदी साहित्य)है। श्रीमती जैन कार्यक्षेत्र में गृहिणी हैं। लेखन विधा-स्वतंत्र लेखन और छंद मुक्त है,व कविता, ग़ज़ल,हाइकु,वर्ण पिरामिड,लघुकथा, आलेख रचती हैं। प्रकाशन के तहत ३ साँझा काव्य संग्रह,हाइकु संग्रह एवं लघुकथा संग्रह आ चुके हैं। पाखी की रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं झारखंड से इंदौर तक छपी हैं। आपको-शीर्षक सुमन,बाबू मुकुंदलाल गुप्त सम्मान,माओत्से की सुगंध आदि सम्मान मिले हैं। मनोरमा जैन की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के माध्यम से मन के भाव को शब्द देना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी में पढ़े साहित्यकारों की लेखनी,हिंदी के प्राध्यापक डॉ. श्याम सनेही लाल शर्मा और उनकी रचनाएं हैं। मन के भाव को गद्य-पद्य में लिखना ही आपकी विशेषज्ञता है।

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