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प्रगति के चश्मे से देखेंगे तो ही भारतीय भाषाओं का विकास हो सकेगा

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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विश्व हिंदी दिवस के प्रस्तावक वीरेंद्र कुमार यादव से मुलाकात

एक बार फिर इसी सप्ताह विश्व हिंदी दिवस का आगाज होने जा रहा है। वर्ष २००६ से प्रत्येक वर्ष १० जनवरी को भारत के विभिन्न दूतावासों और केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों आदि में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। विभिन्न हिंदी सेवी संस्थाएँ भी इस दिन हिंदी के प्रयोग-प्रसार संबंधी विभिन्न कार्यक्रम करती हैं। मन में कई बार यह प्रश्न उठता था कि,आखिर कब और कैसे विश्व हिंदी दिवस मनाने की परम्परा प्रारंभ हुई और इसके लिए किसने पहल की ? पता लगा कि विश्व हिंदी दिवस के प्रस्तावक हिंदीसेवी वीरेंद्र कुमार यादव(पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. जगदंबी प्रसाद यादव के सुपुत्र)हैंl स्व. यादव करीब २५ वर्ष तक सांसद और संसदीय हिंदी समिति के सदस्य व संयोजक भी रहे। उन्होंने केन्द्रीय कार्यालयों में हिंदी के प्रगामी प्रयोग को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पिता की भांति पुत्र यानी वीरेंद्र कुमार भी सदैव हिंदी के प्रयोग और प्रचार-प्रसार को आगे बढ़ाने में सक्रिय रहे हैं। हिंदी से जुड़े विभिन्न आंदोलनों में इनकी प्रमुख भूमिका रही है।

विश्व हिंदी दिवस के उनके प्रस्ताव का सुझाव देने के संबंध में मैंने सीधे वीरेंद्र कुमार यादव से बातचीत की-

‘मेरा यह विचार था कि हिंदी को विश्व-भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए और भारत के बाहर जहां कहीं भी भारतीय हैं और भारतीय दूतावास और उच्चायोग आदि है,वहां पर हिंदी का वातावरण तैयार करने के लिए विश्व हिंदी दिवस मनाया जाना चाहिए। मेरी तरह अनेक विद्वान भी यह चाहते थे। अब प्रश्न था कि विश्व हिंदी दिवस कब मनाया जाए ? मेरा प्रस्ताव था कि विश्व हिंदी दिवस १० जनवरी को मनाया जाना चाहिए। मैंने विदेश मंत्रालय के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन समन्वय समिति की बैठक में ८ जून २००५ को प्रत्येक वर्ष १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने के मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।’

-‘१० जनवरी ही क्यों ? आपने इसी दिन को विश्व हिंदी दिवस मनाने का जो प्रस्ताव रखा,उसका कुछ विशेष कारण तो रहा होगा ?’

#’यह प्रस्ताव रखने के पीछे हिंदी भाषा से जुड़े कई ऐतिहासिक कारण हैं। ‘करीब २१ वर्ष तक तक दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद महात्मा गांधी ९ जनवरी १९१५ को भारत लौटे थे,और अगले ही दिन से वे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के कार्य में लग गए थे। दूसरी बात यह है कि विश्व हिंदी सम्मेलनों की वर्तमान श्रृंखला की शुरुआत भी १० जनवरी १९७५ में नागपुर में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन से हुई थी,अगस्त २०१८ तक मॉरीशस पहुंचकर इसके ११ पड़ाव पूरे हो चुके हैं। इसलिए भी मुझे लगा कि विश्व हिंदी दिवस के लिए १० जनवरी बहुत ही उपयुक्त दिन होगा। एक बड़ा कारण यह भी था कि,७,८ और ९ जनवरी को प्रवासी दिवस मनाया जाता है,जिसमें विदेशों से अनेक प्रवासी भारतीय भारत आते हैं। उसके अगले दिन विश्व हिंदी दिवस मनाने से वे भारत में कार्यक्रमों में भी सहभागिता कर सकते हैं। इसलिए मुझे यह दिन ही उपयुक्त लगा और प्रस्ताव रखा।’

-अब जब पिछले १५ वर्ष से लगातार १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जा रहा है और अब कई दिन बाद देश-दुनिया में विश्व हिंदी दिवस मनाया जाने वाला है तो विश्व भाषा के रूप में हिंदी की प्रगति को आप किस रूप में देखते हैं ?

#‘प्रगति तो हुई है और लगातार हो रही है,लेकिन मैं यह समझता हूँ कि,जब तक देश में हिंदी का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं होगा हमें विदेशों में उतनी सफलता नहीं मिल सकेगी। इसलिए जरूरी है कि देश में हिंदी को रोजगार की भाषा बनाया जाए। जब हिंदी रोजगार की भाषा बनेगी तो शिक्षा में भी इसकी मांग बढ़ेगी। हिंदी की जड़ें तो आखिरकार भारत में ही हैं। जब हिंदी भारत में पुष्पित-पल्लवित होगी तो ही इसकी टहनियां विश्वभर में फैलेंगी। इस प्रकार हिंदी को विश्व भाषा बनाने में मदद मिलेगी।’

हिंदी भाषा को लेकर आपकी अन्य कोई टिप्पणी ?

#’इस सत्य को कोई नहीं झुठला सकता कि,हिंदी न केवल भारत की बल्कि पड़ोसी देशों की भी एक प्रभावी संपर्क भाषा है। मुझे तो लगता है कि भाषा की राजनीति और राजनीति की भाषा ने मिलकर हिंदी की नियति का अपहरण कर लिया है। जब तक राजभाषा नीति और रोजगार नीति में सामंजस्य नहीं होगा,तब तक हिंदी का कोई बड़ा कल्याण नहीं होगा। हिंदी का सर्वाधिक नुकसान शिक्षा और रोजगार से कटने के कारण हुआ है। यदि हम हिंदी और अन्य तमाम भारतीय भाषाओं को राजनीति के बजाय प्रगति के चश्मे से देखेंगे तो ही भारतीय भाषाओं का विकास हो सकेगा। नई शिक्षा नीति के माध्यम से सरकार ने एक बार फिर हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं और हिंदी को आगे बढ़ाने की जो योजना बनाई है आशा करता हूँ कि,उसका लाभ भारतीय भाषाओं को मिलेगा। १० जनवरी २०२१ को आयोजित होने वाले विश्व हिंदी दिवस के लिए सभी हिंदी प्रेमियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। सभी भारतवासियों से अनुरोध करता हूँ कि वे राष्ट्रहित और सशक्तिकरण के लिए अपने हस्ताक्षर अपनी भाषा में ही करने का प्रण करें। तभी विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की सार्थकता होगी।’

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