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‘कोरोना’ को मात देगा भारत

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ के विरुद्ध भारत में अब एक परिपूर्ण युद्ध शुरु हो गया है। केंद्र और राज्य की सरकारें,वे चाहे किसी भी दल की हों,अपनी कमर कस के कोरोना को हराने में जुट गई हैं। इन सरकारों से भी ज्यादा आम जनता में से कई ऐसे देवदूत प्रकट हो गए हैं, जिन पर कुर्बान होने को जी चाहता है। कोई लोगों को आक्सीजन के बंबे मुफ्त में भर-भरकर दे रहा है,कोई मरीजों को मुफ्त खाना पहुंचवा रहा है,कोई प्लाज्मा-दानियों को जुटा रहा है और कई ऐसे भी हैं,जो मरीजों को अस्पताल पहुंचाने का काम भी सहज रुप में कर रहे हैं। हम अपने उद्योगपतियों को दिन-रात कोसते रहते हैं लेकिन टाटा,नवीन जिंदल, अडानी तथा कई अन्य छोटे-मोटे उद्योगपतियों ने अपने कारखाने बंद करके आक्सीजन भिजवाने का इंतजाम कर दिया है। यह पुण्य-कार्य वे स्वेच्छा से कर रहे हैं। उन पर कोई सरकारी दबाव नहीं है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की पहल पर ऑक्सीजन की रेलें चल पड़ी हैं। हजारों टन तरल आक्सीजन के टैंकर अस्पतालों को पहुंच रहे हैं। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ऑक्सीजन-परिवहन का शुल्क भी हटा लिया है। हमारे लाखों चिकित्सक, नर्सें और सेवाकर्मी अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचा रहे हैं। अब प्रधानमंत्री राहत-कोष से ५५१ आक्सीजन-संयत्र लगाने की भी तैयारी हो चुकी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उ.प्र. के योगी आदित्यनाथ तथा कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों ने मुफ्त टीके की भी घोषणा कर दी है। फिर भी १ दिन में साढ़े ३ लाख लोगों का कोरोना की चपेट में आना और लगभग ३ हजार लोगों का दिवंगत हो जाना गहरी चिंता का विषय है। ऑक्सीजन के लेन-देन और आवाजाही को खुला करने की भी पूरी कोशिश की जा रही है। दुनिया के कई देश दवाइयां,उनका कच्चा माल,ऑक्सीजन यंत्र आदि हवाई जहाजों से भारत पहुंचा रहे हैं,पर भारत में ऐसे नरपशु भी हैं,जो ऑक्सीजन, रेमडेसिविर के इंजेक्शन,दवाइयों और इलाज के बहाने मरीज़ों की खाल उतार रहे हैं। उन्हें पुलिस पकड़ तो रही है,लेकिन आज तक एक भी ऐसे इंसानियत के दुश्मन को फांसी पर नहीं लटकाया गया है। पता नहीं हमारी सरकारों को इस मामले में लकवा क्यों मार गया है ? अस्पताली लूट-पाट के बावजूद मरीज़ तो मर ही रहे हैं,लेकिन उनके घरवाले जीते-जी मरणासन्न हो रहे हैं,लुट रहे हैं। हमारे अखबार और टी.वी. चैनल हमारे घरेलू काढ़े,गिलोय और नीम की गोली तथा बड़ (वटवृक्ष) के दूध जैसे अचूक उपायों का प्रचार क्यों नहीं करते ? कोरोना को मात देने के लिए जो भी नया-पुराना, देसी-विदेशी हथियार हाथ लगे,उसे चलाने से चूकना उचित नहीं।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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