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कर्म बड़ा या भाग्य!

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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कर्म के बिना,
न कभी भाग्य
उदय हुआ,
न भाग्य भरोसे
कभी किसी से,
कोई कर्म हुआ।
जो भाग्य के भरोसे,
हाथ पर हाथ धरे
बैठ रहे,
भाग्य उनके
हाथों से,
फ़िसल गया।
भाग्य भी,
उन्हीं का
साथ देता है,
जो कर्म करते हैं।
कर्म करना
इंसां के हाथ में है,
फल देना
ईश्वर का काम है।
जैसा कर्म करेगा,
वैसा फल देगा
भगवान।
भाग्य का सहारा,
तो कमज़ोर लोग
लेते हैं,
कर्मवीर तो
स्वयं अपने,
भाग्य विधाता हैं।
भाग्य के भरोसे
न कर्म छोड़,
कर्म किए जा
प्रारब्धनुसार,
फल अवश्य मिलेगा।
कर्मों के,
बीज डालेंगे
तभी तो,
भाग्य के
फल निकलेंगे।
कर्म अपनी ज़गह
भाग्य अपनी ज़गह,
मनुष्य जीवन में
दोनों की,
अपनी-अपनी
अलग-अलग भूमिका है।
न कर्म बड़ा
न भाग्य बड़ा,
कर्म और भाग्य
दोनों एक-दूसरे के,
पूरक हैं।
कर्म से भाग्य
बनता है,
और
भाग्य से,
कर्म हो जाते हैं॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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