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समझौतों का जीवन

मधुसूदन गौतम ‘कलम घिसाई’
कोटा(राजस्थान)
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समझौता के पहियों पर,जीवन चलता आया है,
जिसने वरना जो चाहा,सबको कब मिल पाया है।

आँख खुली तो समझौता,किस घर में मैं जन्म गया,
कौन मिली माता मुझको,कर्म मिला क्या मुझे नया।
मुझको तो जहाँ जन्म मिला,उस घर को अपनाया है,
समझौतों के दम पर यह,जीवन चलता आया है।

समझ नहीं थी जिससे मैं,थोड़ी जिद कर जाता था,
कुछ हो जाती थी पूरी,कुछ में मन मर जाता था।
कभी-कभी तो खा थप्पड़,ईषत ज्ञान भी पाया है,
समझौता के पहियों पर…

निकला खेल खेलने मैं,घर से बाहर गलियों में,
कोय खिलाता कोय नहीं,इधर-उधर की गलियों में।
इसी तरह रोता-हँसता,बचपन मुझको भाया है,
समझौतों के पहियों पर,जीवन चलता आया है।

जिस स्कूल में पढ़ने भेजा,पसन्द नहीं था बिल्कुल भी,
उसे छोड़ना सहज कहाँ,रह जाना था मुश्किल भी।
करता भी तो क्या करता,सबक ही हिस्से आया है,
समझौतों के पहियों पर…।

खाने से खेल-खिलाड़ी तक,सब तकदीर के हिस्से थे,
पहना-ओढ़ा जो मैंने,सब किस्मत के किस्से थे।
कॉलेजी गलियारों ने,बस मन को भटकाया है,
समझौतों के पहियों पर…।

सोचा बिज़नस वह कर लूँ,जिससे मन को मौज मिले,
मगर नौकरी कहाँ धरी,जिससे मैं न करूँ गिले।
आखिर दौड़-भाग करते,बस नौकर बन पाया है,
समझौतों के पहियों पर…

मिली नौकरी ख्वाब पले,जीवन साथी चुनने के,
देशी और विदेशी कन्या,साथी सपने बुनने के।
मगर मिली ममता मूरत,उसको ही अपनाया है,
समझौतों के पहियों पर…

सच तो यह जीवन क्या है,एक अबूझ पहेली है,
इसकी हर शै अलबेली,एक अनजान सहेली है।
जो भी मिलता गया मुझे,मैंने आनन्द उठाया है,
समझौतों के पहियों पर,जीवन चलता आया है।
फिर भी मुझको गिला नहीं,जीवन अच्छा पाया हैll

परिचय–मधुसूदन गौतम का स्थाई बसेरा राजस्थान के कोटा में है। आपका साहित्यिक उपनाम-कलम घिसाई है। आपकी जन्म तारीख-२७ जुलाई १९६५ एवं जन्म स्थान-अटरू है। भाषा ज्ञान-हिंदी और अंग्रेजी का रखने वाले राजस्थानवासी श्री गौतम की शिक्षा-अधिस्नातक तथा कार्यक्षेत्र-नौकरी(राजकीय सेवा) है। कलम घिसाई की लेखन विधा-गीत,कविता, लेख,ग़ज़ल एवं हाइकू आदि है। साझा संग्रह-अधूरा मुक्तक,अधूरी ग़ज़ल, साहित्यायन आदि का प्रकाशन आपके खाते में दर्ज है। कुछ अंतरतानों पर भी रचनाएँ छ्पी हैं। फेसबुक और ऑनलाइन मंचों से आपको कुछ सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी आप अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समय का साधनामयी उपयोग करना है। प्रेरणा पुंज-हालात हैं।

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