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तालाबंदी:धरती की ‘संजीवनी’

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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वैसे तो पिछले कई सालों से पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास हो रहे थे,परंतु ज्यादातर सिर्फ औपचारिक थे। ‘कोरोना’ ने कहर बरपाया तो लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए। सभी गतिविधियाँ ठप हो गईं और जन-जीवन अस्त व्यस्त हो गया। जहाँ एक तरफ पूरे विश्व को इससे आर्थिक नुकसान हुआ है,तो दूसरी तरफ एक बड़ा फायदा भी हो रहा है। धरती को नया जीवन मिल गया है,हवा-पानी साफ होने के साथ चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ गई है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए तालाबंदी हुई,तो न सिर्फ सड़क पर वाहनों का चलना बंद हुआ,बल्कि मानक के विपरीत चल रहीं तमाम फैक्ट्रियाँ भी बंद हो गईं हैं। इससे वातावरण काफी साफ हुआ। नतीजतन,पूरे भारत का औसतन वायु गुणवत्ता सूचकांक(एक्यूआई)७८ माइक्रोम प्रति घन मीटर हो गया,जो अब तक अप्रैल माह में सबसे कम है। नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड जैसी प्रदूषणकारी गैसों में महत्वपूर्ण गिरावट आई। कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसे वायु प्रदूषकों में ५ से १० प्रतिशत की गिरावट हुई है। मीथेन उत्सर्जन में ३५ फीसदी गिरावट आई है।तालाबंदी से कई गतिविधियाँ बंद हो चुकी हैं। पॉलीथिन का प्रयोग भी लगभग समाप्त है। बीमारियाँ भी कम हुई हैं। दुर्घटनाओं में भी कमी आई है। पिछले लगभग एक माह से चिड़ियों के चहकने और आसमान में तारों के स्पष्ट रूप से दिखने से तय है कि वातावरण बहुत स्वच्छ हो चुका है। जीवन जीने व कार्य की नई संस्कृति मिली है,इसे अपनाना होगा। ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए,जिससे सप्ताह में एक दिन तालाबंदी जैसी स्थिति रहे। तालाबंदी से प्रदूषण में अप्रत्याशित कमी आई है। नदियों के पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। कोरोना त्रासदी की इस काली छाया का यह एक अत्यंत सुखद पहलू है। एक ऐसा पहलू,जिसने बच्चों के सवालों के जवाब भी देना आसान कर दिया,जीने का एक नया और खूबसूरत बहाना भी दे दिया है।‌ बड़े अब बच्चों को बता पा रहे हैं कि-यह बन्दी(तालाबंदी)इसलिए भी की गई है कि आकाश पर छाई काली धुंध छंटे,इसलिए की गई है कि आकाश साफ हो और हर तरफ तारे दिखें,इसलिए भी की गई है धरती,जल,वायु और आकाश सब पहले की तरह साफ हो जाएं,और इसलिए भी की गई है कि चिड़ियों की चहचहाहट फिर से हमारे आँगन,छत और बालकनी पर लौटें,गौरैया फिर धरती पर पहले की तरह दिखाई दे। आँगन से बालकनी तक उछल-कूद करे…कोयल की कूक आसपास गूंजे।
…और ‌यकीन मानिए,इस तालाबंदी ने यह सब दिखा और बहुत कुछ सिखा भी दिया है। इसने हमें आगे के लिए कुछ सवाल भी दिए हैं। कुछ सवालों के जवाब खुद से ही दे भी दिए हैं। इसने जीने का,रहने का एक नया सलीका सिखा दिया है और जिसका असर हर दिन नए-नए रूपों और रंगों में प्रकृति हमें दिखा रही है। बस,हमें सिर्फ इतना ही सोचना है कि कठिन दिनों में मिली इस सीख को हम आगे अपने जीवन में कैसे और कितना ले जा पाते हैं ?

परिचय-गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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