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हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना…………
हे! माँ मुझको गर्भ में ले ले,
बाहर मुझको डर लागे।
देह-लुटेरे,देह के दुश्मन,
मुझको अब जन-जन लागेll
अधपक कच्ची कलियों को भी,
समूल ही डाल से तोड़ दिया।
आत्मा तक को नोंच लिया फिर,
जीवित माँस क्यों छोड़ दिया।
खुद के घर भी अरक्षित बनकर,
अपना सब-कुछ लुटा बैठी।
गैरों की क्या बात कहूं मैं,
अपनों ने भाग्य निचोड़ लिया।
मेरी रक्षा कौन करेगा,
कम्पित मन सोता जागे।
हे! माँ मुझको गर्भ में ले ले,
बाहर मुझको डर लागे।
देह-लुटेरे,देह के दुश्मन,
मुझको अब जन-जन लागेll

देह की पूंजी तुझसे पाई,
रक्षा इसकी कैसे करूँ।
नौ माह में बनी सुरक्षित,
अब क्या,कैसे प्रबंध करूँ।
जन्म बाद के पल-पल,क्षण-क्षण,
मुझको डर क्यों लगता है।
युवपन तक भी पहुंच ना पाऊं,
उससे पहले जीवित मरुँ।
राक्षस-भेड़िए क्या संज्ञा दूं ?
दया न क्यों,उन मन जागे।
हे! माँ मुझको गर्भ में ले ले,
बाहर मुझको डर लागे।
देह-लुटेरे,देह के दुश्मन,
मुझको अब जन-जन लागेll

हे! गिरधारी,लाज बचाने,
कहां-कहां तुम आओगे।
अगणित द्रोपदियाँ बचपन लुट गई,
कैसे सबको बचाओगे ?
भरी सभा-सा समाज यह देखें,
बैठा है आँखें मूंदे।
आह वो भरता,खुद ही डरता,
अब कैसे इसे जगाओगे।
मेरा सहारा किसको मानूँ,
कौन रहे मेरा हो के।
हे! माँ मुझको गर्भ में ले ले,
बाहर मुझको डर लागे।
देह-लुटेरे,देह के दुश्मन,
मुझको अब जन-जन लागेll

सीता तो अपहरित होकर भी,
लाज तो फिर भी बचा पाई।
माँ की गोद जो दूर हुई मैं,
जानूं क्या मैं,कौन कसाई।
रावण से कई गुना है बढ़कर,
उनका पाप,क्यों न जग डोले।
शेषनाग,विष्णु अवतारी,
बोलो,कैसे धरा बचाई।
खून हमारे सनी हुई वह,
डर-डर कर खुद ही काँपे।
हे! माँ मुझको गर्भ में ले ले,
बाहर मुझको डर लागे।
देह-लुटेरे,देह के दुश्मन,
मुझको अब जन-जन लागेll

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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