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प्राची

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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प्राची के तट से उठकर दिनकर मुस्काये,
खग कुल ने मधुरस में भींगे गीत सुनाये।

कर्मवीर चल पड़े सपन को पूरा करने,
जिससे जितना हो सम्भव,पर पीड़ा हरने।

अगर उठे हो ऊपर तो सूरज बन जाओ,
होकर धुर निष्पक्ष धरा रौशन कर आओ।

सागर बनने की इच्छा यदि मन में पालो,
उर में रख सामर्थ्य,मगर अर्णव सम्हालो।

अगर पवन बनकर उड़ना भाता हो मन को,
जैव जगत में प्राण वायु बन सींचो तन को।

इन्द्रासन की भूख जिन्हें छल छद्म करेंगे,
नाना हथकंडे अपनाकर लोभ वरेंगे।

धर्म-कर्म हैं पूरक,जैव-जगत उद्धारक,
बनो नहीं निज स्वार्थवशी होकर संहारक।

कलम हाथ में गहकर कवि बनना गर ठानो,
रच कबीर की वाणी मानवता पहचानो॥

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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