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पुरुष और पुरुषत्व

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जहां नारियां पूजी जाती,
आज वहां कोहराम है क्यों ?
कभी कलंकित हो ना नारी,
लगता नहीं विराम है कर्मों ?

बन बैठा है पुरुष दु:शासन,
कृष्ण कहां पर चला गया ?
बीच सड़क पर जलती नारी,
‘पुरुषत्व’ पुरुष का कहां गया।

अपनी रक्षा खुद करने,
नारी को स्वयं उठना होगा
रणचण्डी खुद बन के असुरों,
का नाश तुम्हें करना होगा।

मत करो भरोसा पुरुषों का,
अब पुरुष नपुंसक है जानो
जो खुद ही कंस बना बैठा,
उसको मानव तुम मत मानो।

मानव खो कर मानवता,
शैतान बन गया है भारी,
ले खड़ग हाथ बन जा काली,
संहार की कर ले‌ तैयारी।

पुरुष प्रधान समाज है ये,
कुछ तो सब लोग शर्म खाओ
नारी की रक्षा कर न सको,
नाली‌ में डूब कर मर जाओ।

शर्म करो तुम सत्ताधीशों,
क्या सरकार चलाते हो
अपराधी जेल में ऐश करें,
ऐसे कानून बनाते‌ हो।

बलात्कारियों को फाँसी दो,
या ‌कर दो जनता के सुपुर्द
करेगी जनता न्याय अपना,
चीर-फाड़ कर खुर्द बुर्द।

दो-चार मरेंगे एकसाथ,
अक्ल तभी तो आयेगी
बलात्कार की घटनाएं ,
तब खुद ही बंद हो जाएगी।

बस ये ही एक तरीका है,
ये जघन्य कर्म रुकवाने का
जो रक्षा नहीं तुम कर सकते,
क्या हक़ सरकार चलाने का ?

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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