कुल पृष्ठ दर्शन : 204

You are currently viewing असली माँ

असली माँ

डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
****************************************

सुभद्र दत्त मगध देश का रहने वाला था। उसकी अतिगुणवती सुशील २ स्त्रियां थीं। एक वसुदत्ता,दूसरी वसुमित्रा। इन दोनों को बहुत समय तक कोई पुत्र नहीं हआ। काफी समय व्यतीत होने पर वसुमित्रा से एक सुन्दर बालक उत्पन्न हुआ।
सुभद्रदत्त के पास अपार धन था,फिर भी वह और धन कमाने के उद्देश्य से देशाटन को निकल पड़ा। विभिन्न देशों से धनार्जन करते-करते वह सपरिवार राजगृह नगर पहुंचा। वहां वह धनार्जन करते हुए सुख पूर्वक रहने लगा। कुछ दिन उपरान्त काललब्धि समाप्त होने पर सुभद्रदत्त देहावसान हो गया। उसकी दोनों स्त्रियों को दु:ख हआ,लेकिन मृत्यु से मनुष्य को कोई नहीं बचा सकता है।
जब तक सुभद्रदत्त जीवित था,दोनों स्त्रियों में प्रगाढ़ प्रेम था। एकसाथ निवास,खान-पान,शयन आदि सब क्रिया-कलाप करती थीं। पुत्र से भी दोनों बहुत प्रेम करती थीं। यहां तक कि बालक को भी भान नहीं कि मेरी जन्मदात्री मां कौन है ? सेठ सुभद्रदत्त के जीते-जी दोनों में कभी नहीं खटकी थी। सुभद्रदत्त ने ऐसा कभी सोचा भी न था कि मेरे मर जाने के बाद इन दोनों में कलह होने लगेगा। अन्यथा वह स्वयं इन दोनों का बंटवारा कर अलग-अलग दायरे में बांध देता।
वसुमित्रा और वसुदत्ता में कभी धन को लेकर कलह होता,तो वे कभी बालक को लेकर विवाद करतीं। धन पर कम,बालक पर ज्यादा झगड़ा होता। इनके रोज-रोज के झगड़े को देखकर नगर के बड़े-बड़े सेठों को एकत्रित होना पड़ा,क्योंकि जिस सेठ की नगर क्या पूरे मगध में अच्छी खासी प्रतिष्ठा थी,उसी के घर में आज कलह हो। उन लोगों ने वसुमित्रा और वसुदत्ता को आपस में झगड़ा न करने के लिए बहुत समझाया,पर उन पर कोई असर नहीं पड़ा। निर्णायकों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे कैसे निपटारा करें ?,क्योंकि बालक को दोनों ‘अपना’ होने का दावा कर रही थीं। नगर के किसी भी व्यक्ति को पता न था कि,बालक की असली माँ कौन है ?
झगड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। आखिर निपटारे के लिए वे दोनों राजगृह के राजा के पास गई। राजा ने दोनों की बात सुनी। उन्होंने भय,गुस्सा दिखाकर बालक की असली माँ ज्ञात करनी चाही, किन्तु उनके सारे प्रयत्न व्यर्थ गए। राजा पसोपेश में पड़ गया। उनके पास ऐसा विचित्र मामला कभी नहीं आया था। उसने बुद्धिमान युवराज अभयकुमार को बुलाकर दोनों के फैसले का भार उन पर सौंप दिया।
युवराज ने वसुदत्ता तथा वसुमित्रा को अलग-अलग एकान्त में ले जाकर पूछा,किन्तु दोनों ने ही अपने को बालक की जन्मदात्री माँ बतलाया। तीक्ष्ण बुद्धि वाला अभयकुमार भी एक बार परास्त होता सा लगा। राजा,मन्त्री,सभाजन अपनी-अपनी उत्सुक निगाहों से युवराज को देख रहे थे। यह विवाद क्या ? अभयकुमार को अपनी बुद्धि की परीक्षा की बेला अनुभूत हुई। युवराज कुमार ने उन स्त्रियों को बहुत समझाया और कई तरकीबों से वास्तविकता जानने की कोशिश की, किन्तु सब तरकीबें नाकामयाब रहीं।

अभयकुमार को गुस्सा आ गया। उन्होंने बालक को जमीन पर लिटा दिया और तलवार उठा बालक के पेट पर सटाकर रखते हुए कहा-‘स्त्रियों! अब आप लोग घबराएँ नहीं,मैं एक क्षण में फैसला करता हूँ। इस बालक के तलवार से २ टुकड़े किए देता हूँ,तुम लोग एक-एक टुकड़ा लेकर अपने-अपने घर चलीं जाना।’ कौन माँ अपनी आँखों के सामने अपनी कोख से उत्पन्न पुत्र को मरते देख सकती है ? पुत्र के टुकड़े-टुकड़े किए जाने की बात सुनकर वसुमित्रा के मन पर मानों कुठाराघात पड़ा। उसके नयनों से अविरल अश्रुधारा बह निकली। उसने रोते हुए अभय कुमार से कहा-मत करो इस बालक के टुकड़े। यह बालक वसुदत्ता का है,मेरा नहीं। इसे वसुदत्ता को दे दो। युवराज अभय को असलियत ज्ञात हो गई। उन्होंने बालक वसुमित्रा को दिया तथा वसुदत्ता को राज्य से निकाल दिया। नकली माँ को अपने कपट भाव रूप अनधिकार चेष्ठा का समुचित दण्ड मिल गया। मगधेश तथा सभागत सब असली माँ का मातृत्व तथा अभयकुमार का न्याय चातुर्य देखकर चकित रह गए।

Leave a Reply