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गणतंत्र

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष………..


मेरा आज का सभी से यह है प्रश्न,
क्यों मना रहे गणतंत्र दिवस का जश्न ?
चलो मैं कुछ पुरानी परतें खोलता हूँ,
और गणतंत्र के बारे में आपको बताता हूँ।
हम संविधान स्थापना का तो जश्न मना रहे,
पर हम ही हर जगह संविधान की धज्जियां उड़ा रहे।
१५ अगस्‍त १९४७ को देश आजाद हूआ,
कई बार संशोधन हेतु संविधान को छुआ।
फिर भारतीय संविधान का अन्तिम निर्माण हुआ।
कुछ समय बाद लगा नम्बर,
३ वर्ष बाद यानी २६ नवम्बर १९५० को आधिकारिक रूप से अपनाया गया,
तब से २६ जनवरी को हमारे द्वारा `गणतंत्र दिवस` मनाया गया है।
कई कमेटियों ने कई देशों के संविधान को पढ़ा और परखा है,
फिर भारतीय लोकतांत्रिकता ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति असंतोष भी व्याप्त होता गया।
कारण भ्रष्ट शासन और प्रशासन तथा राजनीति का अपराधीकरण रहा।
कुछ देश की ही अस्मिता से ही खिलवाड़ करते हैं,
वो ही लोग और सगंठन संविधान के प्रति श्रद्धा नहीं रखते हैंl
फिर ये कैसा जोश,व्यर्थ है यह असंतोष,
इस अश्रद्धा का कारण हमारा संविधान नहीं है।
यह सबको एक धागे में बाँधे रखने का सूत्र है,
यह देश की आत्मा है,यह मात्र परिधान नहीं है।
माओवादी जैसे पूर्वोत्तर के अन्य संगठन आज भी यदि सक्रिय हैं,
मात्र इसका इतना-सा कारण कि,लाभ के लिए सरकार निष्क्रिय है।
अपराधियों के चलते उनका,लोकतंत्र से विश्वास उठ गया,
व्यक्ति ने संविधान को सामान्य नियमावली समझ के संविधान से छल किया।
लिखे जो जज्बात हो सबका साथ,
बनी यह रीत इसमें है सबका हित।
अब समझनी होगी सभी को एक बात,
जब होगा सभी का साथ,तब होगा सभी का विकास।
लादी गई व्यवस्था और तानाशाह,
कभी दुनिया में ज्यादा समय तक नहीं चल पाया।
यही संविधान ने हम सबको बार-बार बतलाया।
माना कि लोकतंत्र की कई खामियाँ होती है,
लेकिन,कोई एक सही नहीं है,गलतियाँ सभी से होती हैं।
शतंरज की बिसात पर राजाओं ने जब चौसर पर मोहरों को फेंका है,
तानाशाही या धार्मिक कानून की व्यवस्था,
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार छीन लेती हैl
छोड़ो अब,आज मना रहे गणतंत्र दिवस का बड़ा पर्व है,
लोकतंत्र को परिपक्व होने दें,हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व है।
अब हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है,
गण पहले से कहीं ज्यादा समझदार होता जा रहा है।
धीरे-धीरे हमें भी लोकतंत्र की अहमियत समझ में आने लगी है,
सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही व्यक्ति खुलकर जी सकता है।
स्वयं के व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और अपनी सभी महत्वाकांक्षाएँ पूरी कर सकता है।
काम आएगा मेरा यह मंत्र,
अपना लोकतंत्र बनेगा `गुणतंत्रl`
समाज परिवर्तित हो रहा है,
मीडिया जागृत हो रही है।
जनता भी जाग रही है,
युवा सोच का विकास हो रहा है।
शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है,
टेक्नोलॉजी संबंधी लोगों की फौज बढ़ रही है।
इस सबके चलते अब देश का,
नेता भी सतर्क हो गया है।
कहे `प्रताप` यह बात एक दिन सच साबित हो जाएगी,
ज्यादा समय तक शासन और प्रशासन में भ्रष्टाचार,
अपराध और अयोग्यता नहीं चल पाएगी।
हमारे देश में सब संविधान का मानेंगे,
तो नए राष्ट्र का निर्माण होगा।
हमारे भविष्य का गणतंत्र,
गुणतंत्र पर आधारित होगा॥

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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