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कहना

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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कहना-
कहना बस मेरा यही,सुन नव कवि प्रिय मीत!
शिल्प कथ्य भाषा सहित,रखें भाव सुपुनीत!
रखें भाव सुपुनीत,छंद लिखना कुण्डलियाँ!
सृजन धरोहर काव्य,उठे क्यों कभी अँगुलियाँ!
शर्मा बाबू लाल,समीक्षा निज हित सहना!
अनुपम लिखना छंद,प्रभावी बातें कहना!

सहना-
सहना सुख का भी कठिन,उपजे मान घमंड!
गर्व किये सुख कब रहे,हो संतति उद्दण्ड!
हो संतति उद्दण्ड,चैन सुख सारे खोते!
हो अशांत आक्रोश,बीज खुद दु:ख के बोते!
शर्मा बाबू लाल,मीत दुख संगत रहना!
कृपा ईश की मान,मिले जो दु:ख सुख सहना!

वंदन-
वंदन करें किसान का,जय जय वीर जवान!
नमन श्रमिक मजदूर फिर,देश धरा विज्ञान!
देश धरा विज्ञान,लोक शिक्षक कवि सरिता!
सागर पर्वत पेड़,पिता माता की कमिता!
शर्मा बाबू लाल,पूज शिव-गौरी नंदन!
गाय गगन खग नीर,वात पावक का वंदन!

आसन-
आसन को करते नमन,रही पुरातन रीत!
पाए जो आशीष वह,होता कब भयभीत!
होता कब भयभीत,पद्म आसन माँ शारद!
सुर नर मुनि जन ईश,असुर सज्जन ऋषि नारद!
कहे लाल कविराय,करें वंदन चतुरानन!
कर लें जीवन धन्य,नमन गुरु शारद आसन!

आतुर-
आतुर जल सरिता बहें,चाहत मिले नदीश!
देश हितैषी कर्म कर,मनुज मिलन जगदीश!
मनुज मिलन जगदीश,स्वर्ग के बने सितारे!
धरा रहे यश मान,गान बजने इकतारे!
शर्मा बाबू लाल,दीप से बन दीपांकुर!
चाहत मान शहीद,तिरंगा लिपटन आतुर!

आभा-
आभा सविता की सतत,प्राकृत विविध प्रमाण!
जड़ चेतन सागर मनुज,जीव जन्तु तरु प्राण!
जीव जन्तु तरु प्राण,बसंती ऋतु बौराए!
भँवरे तितली कीट,गीत पिक विरह बढ़ाए!
शर्मा बाबू लाल,डाल तरु सजते गाभा!
पछुआ सुखद बयार,बढ़े जन मन की आभा!

चितवन-
चंचल चर चितवन चषक,चण्डी चुम्बक चाप!
चपला चूषक चप चिलम,चित्त चुभन चुपचाप!
चित्त चुभन चुपचाप,चाह चंडक चतुराई!
चमन चहकते चंद,चतुर्दिश चष चमचाई!
चाबुक चण्ड चरित्र,चाल चतुरानन चल चल!
चारु चमकमय चित्र,चुनें चॅम चंदन चंचल!

मोहक-
मोहक मनमोहन मधुर,गिरिधर छवि गोपाल।
राधा ग्वालिन साथ में,सजे कन्हैया लाल।
सजे कन्हैया लाल,बाँसुरी मीठी बजती।
पियें हलाहल मौन,भाव मन मीरा भजती।
शर्मा बाबू लाल,कृष्ण की छवि के दोहक।
मोर मुकुट श्रृंगार,श्याम दृग सूरत मोहक।

शीतल-
शीतल मंद समीर जल,वन हो अभयारण्य।
चीता बाघ सियार कपि,देख मनुज मन धन्य।
देख मनुज मन धन्य,लोमड़ी भालू हाथी।
नीलकंठ पिक मोर,सहज खग मृग मय साथी।
विविध वृक्ष गउ नील,तेंदुए हिरनी चीतल।
मानव के हित मान,वन्य वन तरु जल शीतल।

जीता-
जीता चेतक,प्राण तज,विजय प्रतापी आन।
विजित अकबरी सैन्य थी,हार गया वह मान।
हार गया वह मान,मुगलिया मद सत्ता का।
भूले क्यों गत युद्ध,खड़ग जय मल पत्ता का।
हल्दी घाटी ‘लाल’,मुगल कुल कब का रीता।
राणा वन्श महान,शान से अब भी जीता।
(इक दृष्टि यहाँ भी:गाभा=नव कलियाँ,चंडक =चंद्र,चॅम=मित्र,चष=दृश्य शक्ति,चप=चूने का घोल)

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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