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शरद पूर्णिमा:अमृत वर्षा की रात्रि

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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शरद पूर्णिमा स्पर्धा विशेष…..

पूर्णिमा तो हर माह में आती है,पर आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि का मान अनमोल होता है। इस दिन लक्ष्मी की पूजा होती है, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। इसे ‘शरद पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। इसके साथ यह दिन कौमुदी महोत्सव के नाम से भी विख्यात है। शरद पूर्णिमा से ही शरद ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी से रात्रि में भी चारों और उजियाला छाया रहता है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है-
‘मेघा गता निर्मलपूर्ण चन्द्र,शारद्य पुषपाणि मनोहराणि।’
मेरा मन भी शुभ्र ज्योत्स्ना के भाव से चमत्कृत हो रहा है। मन के भाव प्रकट हो रहे हैं;
कौमुदी महोत्सव
मेघ का प्रस्थान हुआ है,
धवल चाँदनी बिखरी है;
शरद पुष्प की मोहकता भी-
कण-कण में अब निखरी है!
नव-जीवन नव उमँग कसा है,
पूजा से नव तरंग उकसा है;
नव शरद अंग अवतरण में-
मन में नवरंग बिकसा है!

नव दम्पति के आस जगे हैं-
भरने उजियारा जीवन में;
शुभ्र चाँदनी के प्रकाश से-
भरने उजियाला तन-मन में!
कौमुदी के श्वेत वसन में-
शुभ्रता का भाव भरा है;
निर्मल जीवन नियमन में-
शुचिता का चाव बहुरा है!

कौमुदी पर्व महोत्सव यह-
अंग-अंग थिरकन लाया है;
अनंग जनित धड़कन संग-
हिय उमंग भी बल खाया है!
नव मन की कोमल कलियाँ-
फूल बनकर अब बिखरी हैं;
सृजन के पावन कार्य में-
जीवन अर्पण हित निखरी हैं!

कान बंदकर विष्णु सोये-
आफत आई चतुरानन पर;
टेर लगाते बड़ी देर हुई-
जब जगे नारायण जल पर!
आज कान बंद कर ले कोई-
सो जाये जग को भूल कर;
विडंबनाएँ खड़ी हो जायें-
कैसे लौटे पाँच वर्ष पर!

सदा पाटलिपुत्र धरती पर-
कौमुदी अभियान चला है;
पूर्वजों के इस अनुष्ठान से-
जन-जन का भी मान बढ़ा है!
आएँ हम सब उत्सव में हो लें,
कौमुदी सम मन को कर लें;
बाहर-भीतर एक सा ही रख-
उजास से सबका मन भर दें!

कहा जाता है कि बिहार के एक राजकुमार के पास कर्नाटक की राजकुमारी का संदेश इसी दिन आया था और तभी से 'कुजागरा-महोत्सव' लक्ष्मीपूजा पर हर वर्ष मनाया जाता है। यह द्रष्टव्य है कि बिहार के दरभंगा महाराज के पूर्वज कर्नाट (अब कर्नाटक) से ही आए थे। इसलिए भी उपरोक्त दन्तकथा का तार्किक आधार बनता है। आज भी खासकर उत्तरी बिहार में विवाह होने पर कन्या की ओर से वर को 'कोजागरा' का भार शरद पूर्णिमा को भेजा जाता है।

शरद पूर्णिमा का महत्व-
पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। कहते हैं कि इस पूर्णिमा को चंद्रमा की रोशनी से अमृत की वर्षा होती है,जिसके कारण पूर्णिमा की रात में जिस भी चीज पर चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं उसमें अमृतत्व का संचार होता है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात में खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। पूरी रात चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखा जाता है। माना जाता है कि,उक्त खीर खाने से शरीर के रोग समाप्त होते हैं।
शरद पूर्णिमा की रात को लक्ष्मी पूजन का भी बहुत महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी का आगमन होता है। इसलिए किसी भी प्रकार की धन संबंधित समस्या का निवारण होता है। आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। इतना ही नहीं, देवी और देवताओं को सबसे ज्यादा प्रिय पुष्प ब्रह्म कमल भी शरद पूर्णिमा की रात को ही खिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान कई गुना फल देते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के बेहद पास होता है,जिससे चंद्रमा से जो रासायनिक तत्व धरती पर गिरते हैं वह काफी सकारात्मक होते हैं। जो भी इसे ग्रहण करता है,उसके अंदर सकारात्मकता बढ़ जाती है।

रोगियों के लिए वरदान-
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है,तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्यौवन शक्ति प्राप्त होती थी। चाँदनी रात में १० से मध्यरात्रि १२ बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र,नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान बनाया है। यह परम्परा विज्ञान पर आधारित है। रातभर रखी खीर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है,वहीं श्वांस के रोगियों को फायदा होता है,साथ ही आँखों की रोशनी भी बेहतर होती है।

सुयोग्य वर हेतु पूजा
इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है। इस दिन कुंवारी लड़कियाँ सुयोग्‍य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। इस दिन लड़कियाँ सुबह स्‍नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं। शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं।

अलग-अलग नाम-
इस तिथि को देश के अलग अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से भी पुकारा जाता है। इसे कौमुदी उत्सव,कुमार उत्सव,शरदोत्सव,रास पूर्णिमा ,कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं। इस तिथि पर खासतौर से जिन स्थानों पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है,उन पूजा पंडालों में लक्ष्मी पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है। यह पूर्णिमा जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है।
इसी दिन से कार्तिक मास के यम नियम,व्रत और दीपदान का क्रम भी आरंभ होता है। शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिता तक नित्य आकाशदीप जलाने और दीपदान करने से दु:ख-दारिद्रय का नाश होता है।

पूजा-विधान
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखते हैं और जितेन्द्रिय भाव से रहते हैं। मान्यता है कि मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है ? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी। इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा की रात में जो भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं,उनकी मनोकामना पूरी होती है। हमें शरद पूर्णिमा का अमृत पान करना चाहिए,ताकि हम जीवन में शुचिता और शीतलता के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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