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नई पीढ़ी को उद्वेलित करती है ‘सिंहनाद

‘सिंहनाद’ पुस्तक के सिंह अनुज मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’ को बधाई देना चाहता हूँ कि श्रृंगारकाल में आपने सिंहनाद किया। जैसा आपने ‘मनु की कलम से’ में लिखा है कि यह आपकी द्वितीय कृति है। आजाद पूरण सिंह राजावत ने इस कृति की भूमिका लिखते हुए मैथिलीशरण गुप्त के एक कालजयी पद को उद्धत किया है,ऐसी ही आपकी कृति कालजयी हो,कामना करता हूँ।
‘सिंहनाद कर दो हे सिंहों’ की ‘कहीं लड़ाई भाषा की है,कहीं जाति की दीवार खड़ी’ पंक्तियां सच्चाई बयां कर रही हैं। ‘सिंहनाद’ कविता में ‘ओ सिंहों की संतानों जागो’ उद्बोधन नई पीढ़ी को उद्वेलित करने वाला है। ‘माटी की मूरत भी रो दी’,तो इतनी अच्छी लगी कि रसोई में गुनगुना उठा। ‘मिला न कोई ऐसा’ देश के स्वाभिमान को जगाने वाली कविता है। ‘प्रताप की गाथा’ १-२ ने तो मन ही मोह लिया। वैसे तो यह पूरी किताब ही देशभक्ति के भावों से ओत-प्रोत है। ‘महिमा भारत देश महान की’ आपकी देशभक्ति की भावना को उजागर कर रही है। ‘राजनीति’ में आपने ऐसा धिक्कारा है कि यदि राजनेता इसे पढ़ लें तो उनका ही नहीं,अपितु देश का उद्धार हो जाए। ‘पुलवामा के शहीदों की शहादत में’ कविता वर्तमान की घटना को वर्णित करती हुई समसामयिक घटनाचक्र से रूबरू कराती है ।
पुस्तक के पृष्ठ और साज-सज्जा सराहनीय हैं। पुस्तक (काव्य-संग्रह)का प्रकाशन समर प्रकाशन(जयपुर)से हुआ है। इस कृति को अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढ़े जाने के लिए हिंदी साहित्य जगत के पाठकों और साहित्यकारों का आह्वान करता हूँ ।

#समीक्षक 

राजवीर सिंह

 

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