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छुईमुई बनता समाज

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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उत्तर प्रदेश के मथुरा में मंदिर में नमाज पढ़ऩे के जुर्म में फैसल खान को गिरफ्तार कर लिया गया है। फैसल और साथियों के खिलाफ पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है। फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद साहिब का कार्टून प्रकाशित करने की घटना के बाद इतना विवाद भड़का कि,यूरोप के बाकी हिस्से भी जिहादी आतंक की आग में घिरते दिखाई देने लगे हैं और फ्रांस को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। केवल इतना ही नहीं,आजकल छोटी-छोटी बातों को लेकर लोग इतने आक्रामक हो जाते हैं जिससे लगने लगा है कि हमारा समाज छुईमुई बनता जा रहा है। मंदिर में नमाज पढऩे में जिसने बुराई देखी,वे लोग शायद हिंदुत्व की विशालता व ग्राह्यशक्ति से अनभिज्ञ रहे होंगे। आचार्य रजनीश ने कहा है कि-धर्म मानव जीवन को इहलौकिक व पारलौकिक सुरक्षा प्रदान करता है और अगर धर्म ही खतरे में आ जाए तो ऐसे धर्म को खत्म ही हो जाना चाहिए।
हिंदुत्व तो इस सिद्धांत पर विश्वास करता है कि, ‘एकम् सद् विप्र बहुदा वदंति’ अर्थात ईश्वर एक है और उसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है,अलग-अलग मार्गों पर चल कर उस सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। देश में शक,हूण,कुषाण आदि अनेक मतों को मानने वाले लोग आए और हमने उन्हें अपने समाज का हिस्सा माना। आज ये सभी विचारधाराएं सभी पंथ हमारे समाज में इस तरह एकाकार हो गए कि,इनको हिंदुत्व से अलग करना कठिन ही नहीं,बल्कि असंभव है। यही है हिंदुत्व की ग्राह्यता यानि ग्रहण करने की शक्ति,लेकिन देखने में आ रहा है कि आजकल परस्पर संशय,कटुता,धर्म के प्रति अति संवेदनशीलता,धर्म को अहं बनाने की प्रवृति इस कदर हावी होती जा रही है कि इन सबके चक्कर में समाज तुनकमिजाज बनता जा रहा है।
अगर देखा जाए तो मंदिर में नमाज पढऩे के किसी के प्रयास की सराहना की जानी चाहिए। जुनूनी मुसलमान अभी तक मंदिरों को बुतखाना कहते आए हैं और मस्जिदों को अल्लाह का घर,परंतु इन्हीं बुतखानों में पढ़ी गई नमाज ने ईशोपनिषद् के ‘ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्’ यानि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है के सिद्धांत पर ही मुहर लगाई है। मंदिर की नमाज ने उन कट्टरपंथियों को यह संदेश दिया है कि,वही अल्लाह ईश्वर के नाम से मंदिर में भी विराजमान है। मंदिर की नमाज जहां दो समाजों के बीच सेतु बन सकती थी,उसे कैंची बनाया जा रहा है।
हिंदुत्व की निर्मल धारा ने समय-समय पर सभी को प्रभावित किया। इसी के प्रभाव में आकर बहुत से मुसलमान भी संतों की गति पा गए। सोलहवीं सदी में रसखान दिल्ली के समृद्ध पठान थे,लेकिन उनका सारा जीवन ही कृष्ण भक्ति का पर्याय बन गया। कहते हैं कि एक बार वे गोवर्धनजी में श्रीनाथ जी के दर्शन को गए तो द्वारपाल ने उन्हें मुस्लिम जानकर मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया। रसखान ३ दिन तक मंदिर के पास पड़े रहे और कृष्ण भक्ति के पद गाते रहे। बाद में लोगों को पता चला कि,ये तो कृष्ण को अनन्य भक्त हैं। मथुरा में यमुना तट पर रमणरेती में निर्मित इस भक्त की समाधि आज भी आनन्दमय प्रवाह से भर देती है। राजस्थान के अलवर में सोलहवीं सदी में पैदा हुए संत लालदास भी मुसलमान थे। ‘हिरदै हरि की चाकरी पर,घर कबहुं न जाएlऐसे पद गाते हुए उन्होंने लालपंथ की नींव रखी। केवल पुरूष ही नहीं,मुस्लिम शहजादियां भी भक्ति के रंग में रंग गईं। इसी कड़ी में औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसां बेगम तथा भतीजी ताज बेगम का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। उनकी तुलना मीरा के साथ सहज ही की जा सकती है। ताजबीबी गाया करती थीं- नन्दजू का प्यारा जिन कंस को पछारा। वह वृन्दावन वारा,कृष्ण साहेब हमारा हैll सुनो दिल जानी मेरे दिल की कहानी तुम। दस्त ही बिकानी बदनामी भी सहूंगी मैंll देवपूजा ठानी मैं नमाज हूं भुलानी। तजे कलमा-कुरान साड़े गुननि गहूंगी मैंll नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै। हूँ तो मुगलानी,हिंदुआनी बन रहूंगी मैंll ऐसे ही थे भक्त कारे बेग,जिनका पुत्र मरणासन्न हो गया तो उसे मंदिर की देहरी पर लिटाकर वह आँसू बहाते हुए कृष्ण से कहने लगे- एहौं रन धीर बलभद्र जी के वीर अब।
हरौं मेरी पीर क्या,हमारी बेर-बार कीll
हिंदुन के नाथ हो तो हमारा कुछ दावा नहीं,
जगत के नाथ हो तो मेरी सुध लीजिएll मराठवाड़ा क्षेत्र में जन्मे कृष्णभक्त शाही अली कादर ने तो गजब भक्तिपूर्ण रचनाएं की हैं। उन्हीं की सुप्रसिद्ध पदावली है- चल मन जमुना के तीर।
बाजत मुरली री मुरली रीll दारा शिकोह का नाम भला किसने नहीं सुना,वे शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र थे लेकिन उनमें हिंदुत्व के उदात्त विचारों ने इतना ज्यादा प्रभाव डाला कि वे वेदों और उपनिषदों का अध्ययन करने लगे। उपनिषदों का ज्ञान फारसी में अनुदित हुआ तो इसके पीछे दारा शिकोह की तपस्या थीl अकबर के नवरत्नों में एक अब्दुर्ररहीम खानखाना अपने जीवन की संझा बेला में चित्रकूट आ गए और भगवान श्रीराम की भक्ति करने लगे- चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवधनरेश।
जा पर विपदा परत है,सो आवत एहि देशll`

गुरू नानक देव जी के शिष्य मरदाना,गुरु रविदास जी के शिष्य सदना,महाराष्ट्र के संत लतीफ शाह,अमेठी के मलिक मोहम्मद जायसी,नर्मदा तट पर रमण करने वाले संत बाबा मलेक,गुजरात के ही बाबा दीन दरवेश,दरिया साहिब,संत यारी साहिब,ग्वालियर के संत बुल्लेशाह,मेहसाणा के रामभक्त मीर मुराद,नजीर अकबराबादी,बंगाल के संत मुर्तजा साहिब आदि बहुत लंबी श्रंखला है मुस्लिम संतों की,जिसको आज के युग में भी जिंदा रखना बहुत जरूरी है। अपने धर्म व आस्था के प्रति सतर्क व सजग रहना जरूरी है,परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हम छुईमुई बन जाएं।

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