विरहिणी का दर्द
श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* सुन्दर रूप नैना कजरारे,चमके जैसे गगन के तारे,ऐसा रूप था विरहिणी का,आज बैठी है मन मारे। सावन आते देखकर भी,विरहिणी नहीं मुस्काती है,वह ताप झेलती रहती मन में,कुछ नहीं बताती है। मन ही मन सोच रही,नहीं किसी से कुछ कहती,विरहिणी अपने दर्द को,दिल में ही छुपाए रहती। जब से साजन गए … Read more