आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य अध्याय-१९.. विकृत रीतियों को दलने में, प्रथम कदम यह होगा मेरा आँख खुली,मैं जागा,वरना, होता अपराधी ही तेरा। यही सोचते पहुँच गये वे, सीधे…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य से अध्याय-१८.......... हुआ द्रवित मन,आँसू छलके, भाव विह्वल पितु लगे सोचने बेटी को भी समझ न पाये, लगे स्वयं को सहज कोसने। शिक्षा देकर…

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छत्तीसगढ़ के असली जननायक रहे वीर नारायण सिंह

लक्ष्मीनारायण लहरे ‘साहिल’ सारंगढ़(छत्तीसगढ़) ************************************************************** छत्तीसगढ़ के इतिहास पर नजर डालें तो अलग-अलग समय में अलग अलग देशभक्त-सपूतों का जन्म हुआ,जो समाज और अपनी जन्मभूमि के लिए जिएl जिनके इतिहास…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य अध्याय-१७.............. देख पिता को इतना चिन्तित, पुन: प्रभाती ने मुँह खोला क्यों हो बैठे मौन पिताश्री, क्या मैंने कुछ अनुचित बोला। तूने नहीं किया…

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एक है संसार

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. आओ मिल कर गायें हम-तुम, एक है संसार उठे हमारे मिले स्वरों की, नभ में भी गुंजार। सूर्य चमकता सबके घर…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य से भाग-१२........ दिन होते ही सेतु बनाती, जीवन में आगे जाने के रात सुखद सपनों में खोती, अंशुमान को अपनाने के। अलग-अलग थे दोनों…

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मृत्यु भोज ऐसा कराना बेटा…

विजयलक्ष्मी जांगिड़ ‘विजया’  जयपुर(राजस्थान) ***************************************************************** हाँ बेटा, मेरी मृत्यु पर तुम भी एक मृत्यु भोज कराना। सड़क पर कचरे से, भूख मिटाती गइया है न, उसे भरपेट हरा चारा खिलाना,…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य अध्याय-१२......... दिन होते ही सेतु बनाती, जीवन में आगे जाने के रात सुखद सपनों में खोती, अंशुमान को अपनाने के। अलग-अलग थे दोनों ही…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य अध्याय-१२ दिन होते ही सेतु बनाती, जीवन में आगे जाने के रात सुखद सपनों में खोती, अंशुमान को अपनाने के। अलग-अलग थे दोनों ही…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-१० आइ.ए.एस. बनने का सपना, अपने से हो चला हताहत जहाँ प्यार की बजी दुंदुभी, सिमट गई उसकी हर चाहत। फिर भी था…

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