आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य अध्याय-१९.. विकृत रीतियों को दलने में, प्रथम कदम यह होगा मेरा आँख खुली,मैं जागा,वरना, होता अपराधी ही तेरा। यही सोचते पहुँच गये वे, सीधे…