भारत में भाषा का मसला:मिलकर राष्ट्रभाषा के सृजन का पुरुषार्थ करें

विजयलक्ष्मी जैन इंदौर(मध्यप्रदेश) ************************************************************************* भारत के हित में देश के भाषाप्रेमियों को अपने-अपने आग्रह छोड़ देना चाहिए,क्योंकि अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति का यही एकमात्र तोड़ है…

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अनमोल प्रण बन गये

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* रातभर जो उबलते दृगों में रहे, प्रात होते ही क्यों ओस कण बन गये। खौलते नीर की तो व्यथा है यही, न गगन ही मिले न…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा' खंडकाव्य अध्याय-९ विधि को सुखद लगी यह जोड़ी, उसने आँखें चार करायीं यह कैसा संयोग अजब था, नजरें भी तलवार बनायीं। लगीं काटने वे सपनों…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-९ विधि को सुखद लगी यह जोडी, उसने आँखें चार करायीं यह कैसा संयोग अजब था, नजरें भी तलवार बनायीं। लगीं काटने वे…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा'  खंडकाव्य से,अध्याय-८ ... बोली माँ पति से समझा कर, अब है समय नहीं सोने का खोजो वर सुयोग्य बेटी को, नहीं एक भी क्षण खोने…

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`आत्मजा`

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य से अध्याय-७ कहते यों बह पड़ीं दृगों से, अविरल दो मोटी धाराएँ निकल पड़ी ज्यों तोड़ स्वयं ही, पलकों की तमसिल काराएँl तारों-सी हो…

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२०५० की होली

विजयलक्ष्मी जांगिड़ ‘विजया’  जयपुर(राजस्थान) ***************************************************************** एक दिन स्कूल का प्रोजेक्ट करते-करते, बेटे ने पूछा- "पापा ये रंग क्या होते हैं ? कहाँ मिलते हैं ?" मैं जो वाट्सएप पर, अपनी…

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अभिनंदन करते तुमको

विजयलक्ष्मी जांगिड़ ‘विजया’  जयपुर(राजस्थान) ***************************************************************** अभिनन्दन करते तुमको, चक्रव्यूह में खड़े अकेले। हम वन्दन करते तुमको, अभिमन्यु से लड़े अकेले। भेद रावण की कलुषित लंका, हनुमान तुम जय,अकेले। अंगद से,जा…

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आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खण्डकाव्य से अध्याय-५ अब यौवन ने ली अँगड़ाई, लगी बिहँसने-सी तरुणाई जैसे बासन्ती बेला में, ललित प्रभाती की अरुणाई। अंग-अंग से लगी छलकने, यौवन की…

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