दादी का संदूक!
डॉ.सत्यवान सौरभहिसार (हरियाणा)************************************ स्याही-कलम-दवात से,सजने थे जो हाथ।कूड़ा-करकट बीनते,नाप रहें फुटपाथ॥ बैठे-बैठे जब कभी,आता बचपन याद।मन चंचल करने लगे,परियों से संवाद॥ मुझको भाते आज भी,बचपन के वो गीत।लोरी गाती मात की,अजब-निराली प्रीत॥ मूक हुई किलकारियां,चुप बच्चों की रेल।गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल॥ छीन लिए हैं फ़ोन ने,बचपन के सब चाव।दादी बैठी देखती,पीढ़ी … Read more