हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** हूँ हो गया अबोध मैं,भूल आमोद-प्रमोद में, प्रेम से पलता जैसे माता-पिता की गोद में ना रहा आभास कुछ! ना रहा एहसास कुछ! हूँ शून्य हो…

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खुद को कुछ और सिखा डालूँ…

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने, अब सोचता हूँ... खुद को कुछ और सिखा डालूँl कुछ मेरे अंदर अब भी बाकी है- अहंकार,क्रोध,कामना,लोभ,दम्भ,द्वेष ... इन्हें संपूर्ण…

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सितारे टूटते तो जरूर हैं

प्रिया सिंह लखनऊ(उत्तरप्रदेश) ***************************************************************************** शब्द मेरे...बेइन्तहा चुभते तो जरूर हैं, अपने भी यकीनन...झुकते तो जरूर हैंl जल-जल कर खाक बच जाती है उनकी, शोले भी कभी-कभी बुझते तो जरूर हैंl…

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ये कैसी दरिन्दगी है

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र देवास (मध्यप्रदेश) ******************************************************************************* हैदराबाद घटना-विशेष रचना.......... ये कैसी दरिन्दगी है, ये कैसी हैवानियत। शर्मशार हो गई, आज इंसानियत। फूलों-सी कोमल, नाज़ुक-सी कली माँ-बाबू के, नाज़ों-नखरों में पली।…

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युद्ध भी जरुरी है

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** हे प्रिय! हृदय से कहना-क्या सत्य स्वभाव से सीधे हो ? या हे प्रिय! भीष्म की ही तरह तुम भी दु:ख के बाणों से बिधे हो…

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इंसान बनिए

भोला सिंह बलिया(उत्तरप्रदेश)  ***************************************** इंसान हैं,इंसान बनिए, दीन-दुखियों की जीवनधार बनिए अपनों के बीच से उठकर, देश के लिए कर्णधार बनिएl इंसान हैं,इंसान बनिए... अपनों का सब द्वेष भुलाकर, प्रेम-सदभाव…

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इक्कीसवीं सदी की नारी है वो

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** अब शाम ढले घर में नहीं बैठती है वो, अब दुपट्टे से अपने चेहरे को नहीं ढकती है वो। अब भय मुक्त है, अधिकार युक्त हैl…

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बच्चों के खेल

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र देवास (मध्यप्रदेश) ******************************************************************************* विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. ज़माने के साथ ही, अब बदल गए हैं बच्चों के खेल। वो दिन गए जब, खेल बड़ा देते थे…

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फिर जग में चित क्यों हारा है

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** ये कोमल हृदय तुम्हारा है, ये प्रिय आँखें तुम्हारी हैं। इनमें नीर की धारा है, इनमें जीवन का सार सारा है। फिर जग में चित क्यों…

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अनंतदास

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात )  **************************************************************** वह आदिवासी लड़का, दिन-दिन भर चढ़ता पहाड़ों पर, चींटियों के साथl उनकी भूख को अपनी हथेली पर सजाता, फिर उतरता पेड़ों से छाँव…

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