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बसंती-बसंती हुआ ये जहां..

पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़) 
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बसंती-बसंती हुआ ये जहां…
सुध अब नहीं है न पूछो कहां!
रूकते नहीं पांव मेरे पिया…
नाचे खुश हो मेरा जिया…l
बसंती…

खेतों ने ओढ़ी है धानी चुनर..
पीले-पीले बूटे सजे…
जब चलती है ये हवा बेखबर,
न पूछो आँचल जाए किधर…!
बसंती…

पतझड़ से उड़ कर पत्ते गए…
शाखों पे पल्लव नए…
ठहरी-ठहरी रूत है यहां…
सुध अब नहीं है न पूछो कहां…l
बसंती…

गेहूं की झूमती बालियां देखो,
महकती आमों की अमराईयां देखो
कोयल की तानें छेड़े हैं गीत,
आ जाओ मेरे ओ मनमीत
बसंती…

अब तो समझो मेरे प्रिये…
इस ऋतु में तेरी यादें लिए…
छन-छन ये धुन कहां…
सुध अब नहीं है न पूछो कहां…l
बसंती…

बसंती-बसंती हुआ ये जहां,
सुध अब नहीं है पूछो कहां
रूकते नहीं…
नाचे खुशी से…l
बसंती…बसंती हुआ ये जहां…,
सुध अब नहीं है न पूछो कहां!

परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।

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