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गांधीवाद-जो सिखाता है जीने की कला

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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शहीद दिवस(३० जनवरी) विशेष……………..
`गांधीवाद` महात्मा गांधी के आदर्शों,विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है,जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है,जो गांधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था।
`सत्य` एवं `आग्रह` दोनों ही संस्कृत भाषा के शब्द हैं,जो भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान प्रचलित हुआ था,जिसका अर्थ होता है सत्य के प्रति सत्य के माध्यम से आग्रही होना। गांधीवाद के बुनियादी तत्वों में से सत्य सर्वोपरि है। वे मानते थे कि सत्य ही किसी भी राजनीतिक संस्था,सामाजिक संस्थान इत्यादि की धुरी होनी चाहिए। वे अपने किसी भी राजनीतिक निर्णय को लेने से पहले सच्चाई के सिद्धांतों का पालन अवश्य करते थे।
गांधी जी का कहना था-“मेरे पास दुनियावालों को सिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं है। सत्य एवं अहिंसा तो दुनिया में उतने ही पुराने हैं जितने हमारे पर्वत हैं।” सत्य,अहिंसा,मानवीय स्वतंत्रता,समानता एवं न्याय पर उनकी निष्ठा को उनकी निजी जिंदगी के उदाहरणों से बखूबी समझा जा सकता है।
कहा जाता है कि सत्य की व्याख्या अक्सर वस्तुनिष्ठ नहीं होती। गांधीवाद के अनुसार सत्य के पालन को अक्षरशः नहीं,बल्कि आत्मिक सत्य को मानने की सलाह दी गयी है। यदि कोई ईमानदारी- पूर्वक मानता है कि अहिंसा आवश्यक है तो उसे सत्य की रक्षा के रूप में भी इसे स्वीकार करना चाहिए। जब गांधी जी प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान स्वदेश लौटे थे तो उन्होंने कहा था कि वे शायद युद्ध में ब्रिटिशों की ओर से भाग लेने में कोई बुराई नहीं मानते। गांधी जी के अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होते हुए भारतीयों के लिए समान अधिकार की मांग करना और साम्राज्य की सुरक्षा में अपनी भागीदारी न निभाना उचित नहीं होता। दूसरी तरफ द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान द्वारा भारत की सीमा के निकट पहुंच जाने पर गांधी जी ने युद्ध में भाग लेने को उचित नहीं माना,बल्कि वहां अहिंसा का सहारा लेने की वकालत की है।
`अहिंसा` का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना’। इसका व्यापक अर्थ है-किसी भी प्राणी को तन,मन,कर्म,वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में भी किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि द्वारा भी पीड़ा न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में,किसी भी प्राणी का कोई नुकसान न करना।
गाँधी जी के अनसार धर्म और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता है,क्योंकि धर्म मनुष्य को सदाचारी बनने के लिए प्रेरित करता है। स्वधर्म सबका अपना-अपना होता है,पर धर्म मनुष्य को नैतिक बनाता है। सत्य बोलना,चोरी नहीं करना, परदु:ख कातरता, दूसरों की सहायता करना आदि यही सभी धर्म सिखाते हैं। इन मूल्यों को अपनाने से ही राजनीति सेवा भाव से की जा सकेगी। गाँधी जी आडम्बर को धर्म नहीं मानते और जोर देकर कहते हैं कि मन्दिर
में बैठे भगवान मेरे राम नहीं हैं। स्वामी विवेकानंदजी के दरिद्र नारायण की संकल्पना को अपनाते हुए मानव सेवा को ही वो सच्चा धर्म मानते हैं। वास्तव में उनका विश्वास है कि प्रत्येक प्राणी ईश्वर की सन्तान है और ये सत्य है;सत्य ही ईश्वर है।
गांधी जी सामाजिक समानता के समर्थक थे,वे मानवता व सामाजिक समरसता में विश्वास करते थे। वे अंत:करण की पवित्रता को मानते थे। साम्प्रदायिक सदभाव व बंधुता उनके जीवन के मुख्य तत्व थे। वास्तव में गांधीवाद का अर्थ है-वे आदर्श जो हमें जीने की कला सिखाते हैं। यह हक़ीक़त है कि गांधीवाद कालजयी है ।
यही कहूंगा कि-
“गांधी ने फैला दिया,सचमुच में उजियार।
आओ हम समझें ज़रा,गांधीपथ का सारll”

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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