राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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बलवंतसिंह जल्दी-जल्दी में हांफता-सा आया और बोला,-“सरकार! सरकार! माँ सरकार गिर गई।” यह कह कर वह उल्टे पांव लौट गया। नेताजी नाश्ता कर रहे थे,जोरों की भूख लगी थी। नाश्ता देरी से लाने पर उन्होंने किसना को भी डांट लगा दी थी,पर अभी, ‘सरकार गिर गई’ कहने से उनकी पूरी भूख ही गायब हो गई। पूरी बात तो सुनी नहीं।
आनन-फानन में टी.वी. का स्विच ऑन किया। नेता जी टी.वी. के आगे ही बैठ गए। रिमोट से चैनल इधर-उधर किये,मगर सरकार के बारे में कुछ ना था। बेचैनी से कमरे में इधर-उधर चक्कर लगाने लगे। लग रहा था रक्तचाप कहीं ऊपर ना चढ़ जाए। इस बार बड़ी मुश्किल से तो एक मौका हाथ आया है मंत्री बनने का,वह भी शायद हाथों से निकल जाएगा। हे भगवान! सोने का छत्र चढ़ाऊंगा, सरकार ना गिरे। सरकार गिर जाएगी,कितना नुकसान होगा। बेटे का फार्म हाउस,पत्नी का फ्लैट,बेटी के लिए फैक्ट्री,साली के लिए दूध की डेरी,लो सारे सपने स्वाहा हो गए। टी.वी. का बटन ऑन कर सारे चैनल बारी-बारी से घुमा डाले। सरकार गिर गई,के बारे में कुछ पता ना चला,तो सोचा अब बलवंता के पास ही जाया जाए।
वे कमरे से आगे बरामदा,फिर चौक पार कर बलवंता के कमरे में पहुंचे तो देखा बलवंता माँ के पैरों में आयोडेक्स लगा रहा है और माँ ‘हाय राम! हाय राम!’ कर रही है।
“माँ को क्या हुआ? बलवंता! क्यों रे ? तूने अच्छा मजाक किया। सरकार गिर गई मैं तो नाश्ता भी ना कर पाया।”
बलवंता बोला,-“सरकार! मैंने कोई मजाक नहीं किया। मैं तो माँ सरकार के लिए कह रहा था कि सरकार माँ सरकार गिर गई। नेताजी ने चैन की साँस ली,-“चलो माँ गिरी है, सरकार नहीं। मेरा मंत्री पद तो सुरक्षित है। बलवंता रे! तू माँ का ख्याल रख। मेरी जरूरत हो तो मुझे बताना। बड़े जोरों की भूख लगी है।” यह कहकर मंत्री जी चले गए। बेटे को माँ से ज्यादा सरकार महत्वपूर्ण हो गई,माँ जाते हुए पुत्र को देखती रह गई।
परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।