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बरखा रानी आई है

महेन्द्र देवांगन ‘माटी’
पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़ 
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गड़-गड़ गरजे आसमान से,घोर घटा भी छाई है।
छम-छम करती हँसती-गाती,बरखा रानी आई हैll
झूम उठी है धरती सारी,पौधे सब मुस्काये हैं।
चहक उठी है चिड़िया रानी,भौंरा गाना गाये हैंll
ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो,हरियाली अब छाई है।
छम-छम करती हँसती-गाती,बरखा रानी आई हैll

लगे छलकने ताल-तलैया,पोखर सब भर आये हैं।
कल-कल करती नदियाँ बहती,झरने गीत सुनाये हैंll
चमक-चमक कर बिजली रानी,नया संदेशा लाई है।
छम-छम करती हँसती-गाती,बरखा रानी आई हैll

खुशी किसानों की मत पूछो,अब तो फसल उगाना है।
नये तरीकों से खेतों में,नई क्रांति अब लाना हैll
माटी की है महक निराली,फसलें भी लहराई है।

छम-छम करती हँसती-गाती,बरखा रानी आई हैll

परिचय–महेन्द्र देवांगन का लेखन जगत में ‘माटी’ उपनाम है। १९६९ में ६ अप्रैल को दुनिया में अवतरित हुए श्री देवांगन कार्यक्षेत्र में सहायक शिक्षक हैं। आपका बसेरा छत्तीसगढ़ राज्य के जिला कबीरधाम स्थित गोपीबंद पारा पंडरिया(कवर्धा) में है। आपकी शिक्षा-हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर सहित संस्कृत साहित्य तथा बी.टी.आई. है। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सहयोग से आपकी २ पुस्तक-‘पुरखा के इज्जत’ एवं ‘माटी के काया’ का प्रकाशन हो चुका है। साहित्यिक यात्रा देखें तो बचपन से ही गीत-कविता-कहानी पढ़ने, लिखने व सुनने में आपकी तीव्र रुचि रही है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा से प्रकाशित पत्रिका में भी कविता का प्रकाशन हुआ है। लेखन के लिए आपको छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा सम्मानित किया गया है तो अन्य संस्थाओं से राज्य स्तरीय ‘प्रतिभा सम्मान’, प्रशस्ति पत्र व सम्मान,महर्षि वाल्मिकी अलंकरण अवार्ड सहित ‘छत्तीसगढ़ के पागा’ से भी सम्मानित किया गया है।

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