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लड़ाई है ये मानवता के हक की

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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बन कर सिपाही,
लड़ाई है
ये लड़नी।
अपने घरों से
अपनी स्वेच्छा से,
समय की विकट
परिस्थिति को समझो।
हमें एक होकर,
इस कठिन घड़ी में
बरतना है संयम।
जुटानी है हिम्मत,
अगर जरा-सी
जो हो गयी ग़फ़लत,
चुकानी पड़ेगी
बहुत भारी क़ीमत।
नहीं कैद,
प्रेम का
बन्धन समझना,
न बाहर निकलना
घरों में ही रहना।
सुनो मेरे बन्धु,
सुनो मेरी बहना,
बड़ी कुर्बानियाँ
देते रहें हैं,
सीमा पर
ये सैनिक।
मिला है हमें भी,
घर बैठे
ये अवसर।
इसे हाथ से,
न यूँ ही गंवाना
जो सोए हैं अनजान,
उनको जगाना।
लड़ाई है ये
मानवता के हक की,
हमें मिलकर
इसमें है
सहयोग करना।
न डरना मगर
न बहादुरी दिखाना,
वचन की तरह
हर नियम निभाना।
बस बात इतनी-सी है,
ये याद रखना
किया जो है वादा
न इसे भूल जाना।
न समझना मज़बूरी,
ख़ुशी से निभाना।
हमें जीतना है,
‘कोरोना’ को हारना॥

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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