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भारत में सच्चा लोकतंत्र जरूरत

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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लोग पूछ रहे हैं कि,भारत को सच्चा लोकतंत्र कैसे बनाएं ? कुछ सुझाव दीजिए। सबसे पहले देश की सभी पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र हो,याने किसी भी पद पर कोई भी नेता बिना चुनाव के नियुक्त न किया जाए। पार्टी के अध्यक्ष तथा सभी पदाधिकारियों का सीधा चुनाव हो,गुप्त मतदान द्वारा। दूसरा, किसी को भी नगर निगम,विधानसभा या संसद का उम्मीदवार घोषित करने के पहले यह जरुरी हो कि वह पार्टी-सदस्य पहले अपनी पार्टी के आतंरिक चुनाव में बहुमत प्राप्त करे। नेताओं द्वारा नामजदगी एकदम बंद हो। तीसरा,यह भी किया जा सकता है कि पार्टी अध्यक्ष,महासचिव और सचिवों को
२ बार से ज्यादा लगातार अपने पद पर न रहने दिया जाए। चौथा,पार्टी की आय और व्यय का पूरा हिसाब हर साल सार्वजनिक किया जाए। हमारी पार्टियों को रिश्वत और दलाली के पैसों से परहेज करना सिखाया जाए। पांचवां,अपराधियों को चुनावी उम्मीदवार बनाना तो दूर की बात है,ऐसे गंभीर आरोपियों को पार्टी सदस्यता भी न दी जाए और अगर पहले दी गई हो तो वह छीन ली जाए। छठा,ऐसा कानून बने कि कोई भी दल-बदलू अगले ५ साल तक न तो चुनाव लड़ सके और न ही किसी सरकारी पद पर रह सके। सातवां,जो भी व्यक्ति किसी दल का सदस्य बनना चाहे,उसके लिए कम से कम एक साल तक आत्म-प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। वह दल के इतिहास,नेताओं के जीवन,दल के आदर्शों,सिद्धांतों,नीतियों और कार्यक्रमों से भली-भांति परिचित हो जाए, इसके लिए उसे बाकायदा एक परीक्षा उत्तीर्ण करनी चाहिए। आठवां,थोक मत या वोट बैंक की राजनीति पर प्रतिबंध होना चाहिए। किसी भी दल को जाति या संप्रदाय के आधार पर राजनीति नहीं करने दी जानी चाहिए। यदि इस नियम का कड़ाई से पालन हो तो देश के कई राजनीतिक दलों को अपना बिस्तर-बोरिया गोल करना पड़ेगा। नौवां,किसी भी दल के उच्च पदों पर एक परिवार का एक ही सदस्य रहे,उससे ज्यादा नहीं। इस प्रावधान से हमारे राजनीतिक दल प्राइवेट लिमिटेड कम्पनियां बनने से काफी हद तक बच सकेंगे। दसवां,सत्तारुढ़ दल जागरुक रहे और विरोधी दल रचनात्मक भूमिका निभाते रहें,इसके लिए जरुरी है कि सभी राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं के लिए ३ या ५ दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगाएं ,जिनमें उनके साथ विचारधारा,सिद्धांतों और नीतियों पर खुला विचार-विमर्श हो। ग्यारहवां, सभी दलों के पदाधिकारी और चुने गए नेताओं के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि,वे अपनी और परिवार की चल-अचल संपत्ति का ब्यौरा हर साल सार्वजनिक करें, ताकि देश को पता चले कि-
‘राजनीति है सेवा का घर,खाला का घर नाय।
जो सीस उतारे कर धरे,सो पैठे घर माय॥’

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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