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‘कुशल नेतृत्व’ वही,जो सबका हिय-मन लेकर चले

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने ३ जुलाई को एकाएक सुबह लद्दाख जाकर भारतीय सेना का मनोबल बढ़ा दिया और पूरे देश को इस आकस्मिक यात्रा से चकित भी कर दिया। इसके पहले गलवान घाटी की झड़प में शहीद हुए २० जवानों के बारे में उन्होंने कहा था कि वे मारते-मारते मरे! इन उत्साह की बातों से जवानों में इतना आत्मबल बढ़ा कि भारत की सेना विश्व में अच्छी जानी जाने लगी है।
‘कोरोना’ विषाणु के विरूद्व संग्राम ठानने के लिए देशवासियों को विश्वव्यापी समस्या से लड़ने के निमित्त २१ दिनों तक ‘सामाजिक दूरी’ बनाकर रहने का आह्वान उन्होंने किया था और इसे भारतीयों ने सहज लागू कर लिया। इसी अवधि में रात्रि ९ बजे ९ मिनट तक बिजली की रोशनी बुझाकर उन्होंने दीया ,मोमबत्ती,टार्च,मोबाईल की रोशनी अपने घर के दरवाजे,बाॅलकनी पर जलाने का आह्वान कर पूरे देश को एकजुट कर दिया। इस ‘ताला-बंदी’ को शुरू करने के पहले भी २२ मार्च को सुबह से रात्रि तक ‘जनता कर्फ्यू’ लगाने का आह्वान कर संध्या को सबको अपने दरवाजे,बाॅलकनी आदि पर जाकर ताली,थाली बजाने,शंख फूंकने आदि की राय देकर पूरे देश को कोरोना के खिलाफ लड़ने को उन्होंने एकत्रित कर लिया था,जो उनके कुशल नेतृत्व का परिचायक है। अभी जब कोरोना को मात देने की बात है तो लोगों ने जान जाने के भय से ही सही,सामाजिक दूरी बनाकर चलने को मन बना लिया है। साथ ही अ-तालाबंदी-१ में भी घर से बाहर निकलने पर मुँह पट्टी लगाना और १ मीटर की दूरी से ही एक-दूसरे के संपर्क में रहने का पालन करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं,इसके पहले भी सहसा ‘नोट-बंदी’ होने पर लोगों ने सुख-सुविधा के विनष्ट हो जा सकने की कीमत पर भी इसे स्वीकार कर लिया था। मुस्लिम महिलाओं के लिए लागू ‘तीन तलाक’ की प्रथा पर कानूनी रोक लगवाने के लिए देश को एक कर लिया था। जम्मू-कश्मीर में लागू संविधान की ३७० धारा हटा लेने की बात को भी अपनी ही बात समझकर सबने सहर्ष स्वीकार कर लिया। दिल्ली के १००
दिन से ऊपर चल रहे धरने को जब हटा दिया गया तो किसी को इसका भान भी नहीं था कि देश में २१ दिन के लिए तालाबंदी लागू करने हेतु यह अनिवार्य था। ये सब बातें कुशल नेतृत्व से ही प्रकट होती हैं!
नेतृत्व क्या है ? देखें तो नेतृत्व की व्याख्या इस प्रकार है-“नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक सर्वनिष्ठ कार्य सिद्ध करता है।”
ओसवाल्ड स्पैगलर ने अपनी पुस्तक ‘मैन एण्ड टेक्निक्स’ में लिखा है,-‘‘इस युग में केवल दो प्रकार की तकनीक ही नहीं है,वरन् दो प्रकार के आदमी भी हैं। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति में कार्य करने तथा निर्देशन देने की प्रवृति है,उसी प्रकार कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी प्रकृति आज्ञा मानने की है। यही मनुष्य जीवन का स्वाभाविक रूप है। यह रूप युग परिवर्तन के साथ कितना ही बदलता रहे,किन्तु इसका अस्तित्व तब तक रहेगा जब तक यह संसार रहेगा।’’
शासन करना,निर्णय लेना,निर्देशन करना, आज्ञा देना आदि सब एक कला है,एक कठिन तकनीक है,परन्तु अन्य कलाओं की तरह यह भी एक नैसर्गिक गुण है। प्रत्येक व्यक्ति में यह गुण या कला समान नहीं होती है। उद्योग में व्यक्ति के समायोजन के लिए पर्यवेक्षण (सुपरविजन),प्रबंध तथा शासन का बहुत महत्व होता है। उद्योग में असंतुलन बहुधा कर्मचारियों के स्वभाव दोष से ही नहीं होता,बल्कि गलत और बुद्धिहीन नेतृत्व के कारण भी होता है। प्रबंधक अपने नीचे काम करने वाले कर्मचारियों से अपने निर्देशानुसार ही कार्य करवाता है। इसलिए प्रबंधक का नेतृत्व जैसा होगा,कर्मचारी भी उसी के अनुरूप कार्य करेंगे।
स्मिथ ने कहा है-“यदि किसी व्यक्ति के पास सुन्दर बहुमूल्य घड़ी है और वह सही तरह से काम नहीं करती है,तो वह उसे मामूली घड़ीसाज को सही करने के लिए नहीं देगा। घड़ी की जितनी बारीक कारीगरी होगी,उसे ठीक करने के लिए भी उतना ही चतुर कारीगर होना चाहिए। कारखाने या फैक्ट्री के विषय में भी यही बात है। कोई भी मशीन इतनी जटिल और नाजुक नहीं और न ही इतना चातुर्यपूर्ण संचालन चाहती है,जितना प्रगतिशील प्रबंध नीति। यह आवश्यक नहीं कि प्रबंध नीति प्रगतिशील हो। आवश्यकता इस बात की होती है कि प्रबंध नीति सुचारू रूप से हो,यदि सुचारू रूप से प्रबंध नीति चलेगी तो प्रगति अपने-आप होने लगेगी।”
प्रबंध जगत में नेतृत्व का अपना एक विशिष्ट स्थान है। संस्था की सफलता या असफलता हेतु काफी हद तक नेतृत्व जिम्मेदार होता है। कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी संस्था सफलता के सोपान को पार नहीं कर सकती है। फिटर एक ट्रकर के शब्दों में,-“प्रबंधक किसी व्यवसायिक उपक्रम का प्रमुख एवं दुर्लभ प्रसाधन है। अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सफल होने का प्रमुख कारण कुशल नेतृत्व ही है।” अत:,नरेन्द्र मोदी ने वही प्रक्रिया अपनाई,जो सबका हिय-मन लेकर चले।
कुशल नेतृत्व की विशेषता होती है कि घर क्या-बाहर भी वह सबका दिल जीत लेता है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यही बात चरितार्थ होती है,क्योंकि वे स्वदेश क्या विदेश में भी सबके दिल में गहरे बैठे हुए हैं।

भारत के ‘योग’ पर आज विश्व के अधिकांश देश फिदा हैं और कोरोना महामारी से रक्षा के मामले में तो उन्हें विश्व ही सहायक,पथ-प्रदर्शक मान बैठा है,जिसका लिट्मस परीक्षण तो कोरोना बीमारी से लड़ने के लिए हाइड्रोक्सीक्लौरौक्वीन दवा की अमेरिका सहित कई देशों को भारत द्वारा आपूर्ति कर देने पर सिद्ध हो चुका है,लेकिन इसका श्रेय वे खुद को न देकर भारत की १३०करोड़ जनता को देते हैं। हमें भी इस बात पर गर्व करना चाहिए कि भारत धीरे-धीरे विश्व गुरु का स्थान प्राप्त कर रहा है।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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