नवेन्दु उन्मेष
राँची (झारखंड)
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‘तालाबंदी’ के दौर में अर्थव्यवस्था बीच में बाजार में गिर गयी थी। उसे उठाने का प्रयास तब पुलिस वालों ने किया,लेकिन वे उसे उठा नहीं पाए। पुलिस वाले तो उस पर सिर्फ लाठियां चला रहे थे और कह रहे थे कि मुआ अर्थव्यवस्था को भी इसी तालाबंदी के वक्त में गिरना था। हम लोग ‘कोरोना’ के मरीजों को उठाने में व्यस्त हैं और यह अर्थव्यवस्था बीच सड़क पर पड़ी है। वैसे भी अर्थव्यवस्था हमारे देश की आन,बान और शान मानी जाती है। अगर अर्थव्यवस्था गिरी रहती है तो जीडीपी वृद्धि भी नहीं बढ़ती है। शेयर बाजार के गिरने से ऐसा लगा है कि मानो देश में अमेरिका का ‘स्काइलैब’ गिरने वाला हो। इस बीच अर्थव्यवस्था सड़क पर गिरी रहे तो कोई भी इसे सहन नहीं कर सकता। इसकी जानकारी कुछ लोगों ने सामाजिक मीडिया से सरकार को दी। तब सरकार उसे उठाने के लिए सक्रिय हुई। सरकार ने भी कहा कि अर्थव्यवस्था का बीच बाजार में गिर जाना किसी भी स्थिति में देश के लिए उचित नहीं है। इसे हर हाल में उठाना हम सभी का कर्तव्य है। इसलिए सबसे पहले सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने का आदेश दिया। इसके बाद कुछ शराबी दारू पीकर गिरी हुई अर्थव्यवस्था को उठाने के लिए आए। लड़खड़ाते कदमों से डग मारते हुए वे अर्थव्यवस्था के भारी-भरकम शरीर को उठा नहीं पाए। जब वे उसे उठा रहे थे तो उनके मुँह से लार गिर रही थी। तब पुलिस वाले उनसे कह रहे थे तुम्हें मालूम नहीं है कि सरकार ने सड़कों पर थूकने पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारे मुँह से लार गिरना कानूनन जुर्म है। जुर्म की बात सुनते ही शराबी भाग खड़े हुए। बोले अर्थव्यवस्था से तो अच्छी अपनी शराब की दुकान है। अगर अर्थव्यवस्था पर दारू का छिड़काव किया जा तो वह खुद उठकर बैठ जाएगी।
इस बीच एक कवि महोदय भी बीच सड़क पर पड़ी अर्थव्यवस्था को देखने के लिए आ धमके और कविता के अंदाज में बोले-’ माशूका के नाज उठाने को मजदूर बुलाए जाते हैं।‘ आगे उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था रूपी माशूका बगैर मजदूरों के उठ नहीं सकती। कवि की बातों को सुनकर सरकार ने मजदूरों को खोजने का आदेश दिया। अधिकारी परेशान हुए। बोले-आखिर हम मजदूरों को कहां से खोज कर लाएं। सभी अपने घर चले गए हैं और जो घर नहीं जा सकें हैं वे संगरोध केन्द्र में बंद हैं। उनके आने से तो कोरोना बढ़ने का खतरा है। अंत में अधिकारियों ने सरकार को रिपोर्ट दी कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि तालाबंदी के दौर में आखिर अर्थव्यवस्था सड़कों पर कैसे आ गयी। अगर आ भी गयी तो वह दुर्घटनाग्रस्त कैसे हो गयी। इससे जाहिर होता है कि सारा दोष अर्थव्यवस्था का है। अर्थव्यवस्था को भी समझना चाहिए था कि देश में तालाबंदी चल रही है इसलिए उसे घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए था। अधिकारियों की रिपोर्ट आने के बाद अर्थव्यवस्था से संबंधित विभाग ने आदेश जारी किया कि किसी तरह उसे सड़क पर से उठाया जाए। इसके बाद उसकी किसी सरकारी अस्पताल में कोरोना जाँच कराई जाए। कोरोना जाँच के बाद अर्थव्यवस्था को १४ दिनों तक किसी बैंक के ताले में संगरोध किया जाए,ताकि उससे शेयर बाजार,उद्योग धंधे,बैंकिंग क्षेत्र इत्यादि को संक्रमण से बचाया जा सके।
परिचय-रांची(झारखंड) में निवासरत नवेन्दु उन्मेष पेशे से वरिष्ठ पत्रकार हैंl आप दैनिक अखबार में कार्यरत हैंl