कुल पृष्ठ दर्शन : 289

You are currently viewing सोच सदा जग स्वस्ति की

सोच सदा जग स्वस्ति की

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

************************************************

जय सुधीर गंभीर नर,उद्यमशील विनीत।
सफल कीर्ति अनमोल धन,निशिचन्द्र मधुप्रीत॥

अर्थ बने सम्बन्ध के,अपनापन विश्वास।
साथ खड़े सुख त्रासदी,हो रिश्ते आभास॥

बँटे सहोदर स्वार्थ में,भूले सब दायित्व।
लखि हर्षित दुखार्त में,खोए गुण अस्तित्व॥

साथ खड़े जो मीत हो,त्यागमूर्ति परमार्थ।
सौ जीवन उस प्रीत दूँ,सखा कृष्ण सम पार्थ॥

सोच सदा जग स्वस्ति की,साधुचित्त समुदार।
सचमुच जीये सफल जन,नश्वर जीवन सार॥

करो भला जो कर सको,रहो मुदित संसार।
कौन कहे कब हो यहाँ,परहित रत जग पार॥

राष्ट्रधर्म नित ध्येय हो,जीवन दो निज देश।
निर्माणक अवदान जो,प्रगति शान्ति संदेश॥

खिलो पुष्प अरुणिम किरण,महकाओ गुण देश।
इन्द्रधनुष सतरंग से,बने चारु परिवेश॥

बने सदा विरुदावली,शौर्य वीर बलिदान।
दें जीवन माँ भारती,जन गण सेवा मान॥

शब्दाक्षर कवि भाव मन,हो ‘निकुंज’ आह्लाद।
सुखद सुरभि मुस्कान से,जन भारत आबाद॥

जनता बने प्रबोधिनी,कविता नित जनक्रान्ति।
संगति हो सद्कर्म की,मिटे घृणा मन भ्रान्ति॥

सुखद शान्ति अरुणाभ जग,सरसिज मुख मुस्कान।
प्रीति भक्ति नव चेतना,भारतमय अवदान॥

सादर स्नेहिल परहिता,साधु संग मकरन्द।
जीवन अर्पित देश को,सद्चर्चा आनन्द॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply