कुल पृष्ठ दर्शन : 217

You are currently viewing शिक्षक बिन विद्यालय यानि बैल से दूध निकालना

शिक्षक बिन विद्यालय यानि बैल से दूध निकालना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************

मध्यप्रदेश सरकार का यह मत है कि,आजकल छात्र-छात्राएं अभिमन्यु जैसे गर्भ से ही शिक्षित पैदा होती हैं और मोबाइल-लेपटॉप युग के कारण अब शिक्षा की कोई जरुरत नहीं है,इसलिए शिक्षकों के बिना अध्ययन-अध्यापन किया जा सकता है। इसीलिए रिक्त स्थानों को भरने की जरुरत भी नहीं है। इससे कई फायदे हैं,जैसे बिना पढ़े-लिखे लोग रोजगार कार्यालय में पंजीकृत नहीं होंगे। दूसरे उनको घर से बाहर पढ़ने,नौकरी करने की जरुरत नहीं होगी। सब अपढ़ बच्चे अपने माँ-बाप के पास रहेंगे और सरकार पर भार नहीं होंगे।
शिक्षा तंत्र ४ स्तम्भ पर आधारित हैं-शिक्षक, पुस्तकें संसाधन,छात्र और भवन,पर शिक्षा तंत्र में मंत्री,सचिव-संचालक,होना अनिवार्य है। प्राचार्य-शिक्षक न हो तो भी शिक्षा का लक्ष्य पूरा हो जाता है। जिसके आधार पर हमारी बुनियाद रखी जाती है,वह बिना नींव के हैं,और हम कितनी भी बड़ी से बड़ी बात कर लें,सब झूठे होंगे।
‘कोरोना’ काल में कृत्रिम,आभासी माध्यमों से पढ़ाई-लिखाई का नाटक मात्र पैसा वसूली के लिए किया जा रहा था और किया जा रहा है,उससे कोई भी संतुष्ट होगा! इसका ज्वलंत उदाहरण राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री,राज्यपाल,मंत्री,अफसर बेचारे जो जीवंत संपर्क करना चाहते थे,उन्हें आभासी दुनिया में रहकर अपना काम करना पड़ रहा है।

इस मायने में बिना विद्यालय और शिक्षकों के इस बहाने राज्य सरकार पर वित्त का बोझ नहीं पड़ रहा,कारण वेतन नहीं देना पड़ रहा,भवन की जरुरत नहीं है।
वैसे शहर और गाँव के अभिभावक अधिकतर मूढ़ होते हैं,मूर्ख नहीं। हमारी मनपसंद सरकार बातें करने और कराने में बहुत निपुण है,स्वप्रशंसा और पर निंदा से भरपूर है। असल में वर्तमान सरकार के जितने भी मंत्री,विधायक,अफसर इस पीड़ा से मुक्त हैं उन्हें अपनी चिंता नहीं है। उनकी नयी पीढ़ी के लिए कान्वेंट और विदेश दूर नहीं हैं एवं गाँव-शहरों की चिंता चुनाव के समय होती है। आज १ विधायक का पद रिक्त हो जाता है,तो दिन-रात चिंतन-मनन चलता रहता है,क्योंकि विधानसभा में बहुमत का सवाल होता है,पर जिनसे देश का भविष्य बनना है,उनके प्रति लापरवाह हैं। इस आधार पर हम विश्व गुरु की संभावना तलाश रहे है,यह कदम वैसा ही है,जैसे बैल से दूध निकालना हो।
शराब की दुकानें खुलवाने सरकार तत्पर है,उसका कारण आमदनी है। अभी बार रूम की मांग उठेगी तो तत्काल मान ली जाएगी, पर अस्पताल,शाला ये खर्चीले विभाग हैं,इन पर ध्यान नहीं जाता है। हाँ,अभी कोई योजना करोड़ों-अरबों की हो तो उस पर तत्काल व्यवस्था बनती है।
हमें एक बात ध्यान रखना होगी कि,जब तक राष्ट्र में शिक्षा,स्वास्थ्य व्यवस्था समुचित नहीं होगी,वह उन्नत नहीं होगा। हाँ,हम ऊपर से अच्छे दिखेंगे,पर हमारा एक्स-रे खोखला होगा। हम सब बातें बहुत ऊँची करते हैं,सब्जबाग दिखाते हैं,पर धरातल में सब शून्य है।
यह बात साफ इशारा कर रही है कि,१५ साल में सरकारी विद्यालय ३गुना बढ़े,लेकिन शिक्षकों के २७ हजार पद खाली हैं। इससे स्पष्ट है कि,जिनसे बुनियाद तैयार होती है,उनके प्रति हम कितने उदासीन हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply