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अख़बार रद्दी कर गया विकास

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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सुबह का अखबार शाम को रद्दी हो जाता है,यह तय है पर इस बार अखबार सुबह-सुबह ही रद्दी हो गया। ये चंदू भैया के जीवन में किसी हादसे से कम नहीं है। पूरे ४ रुपए का अखबार चंदू भैया को लेना पड़ रहा है। वो भी मजबूरी में,क्योंकि बचपन से ही चंदू भैया को तंबाकू और बीड़ी मांगने की आदत रही। उनने सदा से ही मांग कर ही अखबार पढ़ा है,पर कोरोना के कारण लोग कोई भी मांगी हुई चीज दे नहीं रहे हैं। मांगने जाए तो भी पड़ोसी मुँह खोलकर इंकार कर देते हैं,और कहते हैं कि,कोरोना के कारण वे नहीं दे पाएंगे,माफ करें। पहले तो पड़ोसियों का यह व्यवहार चंदू भैया को थोड़ा अटपटा लगा,पर आखिर में मन मारकर उन्होंने एक अखबार की बंदी लगवा ही ली,लेकिन अखबार वो मंगवाते जिसमें पृष्ठ ज्यादा हो और दाम कम हो,पर मुई तालबन्दी के कारण सारे अखबारों ने दाम तो वही रखे,पर पृष्ठ कम कर दिए। इसके कारण रद्दी कम बैठ रही है,और चंदू भैया अखबार से होने वाली आवक-जावक का हिसाब लगाते हुए वैसे ही तनाव में रहते हैं। उन्हें पता है कि जितने रुपए वे हॉकर को देंगे,उसका पच्चीस प्रतिशत ही कबाड़ी उनको देगा। याने पचहत्तर प्रतिशत नुकसान तय है,पर करें क्या,आदत जो पड़ गई है। २ दिन पहले चंदू भैया का तनाव और ज्यादा बढ़ गया। सवेरे-सवेरे अखबार में विकास कथा पढ़ रहे थे कि,इतने में टी.वी. पर समाचार आ गया कि विकास की कथा में एक और नया पृष्ठ जुड़ गया है। विकास हमेशा आगे की ओर दौड़ता था,और रोज नया इतिहास लिखता था। कहते हैं-जो दौड़ता है उसके पीछे भी कुछ लोग दौड़ते हैं,टांग खीचने के लिए`,पर इस पृष्ठ में दौड़ने वाले विकास की कहानी में दौड़ के साथ ठहराव वाला भाग बड़ा रोचक और रोमांचक था। टांग खींचने वाली बात तो कहीं थी ही नहीं,बल्कि विकास खुद अपनी टांग लम्बी किए खड़ा हो गया। यही बात उसकी कहानी में और सनसनी या रहस्य ला रही थी,और चंदू भैया का रोमांच बढ़ता जा रहा था। विकास गया तो गया,अखबार पढ़ने का सब मजा किरकिरा कर गया। महाकाल की शरण में आया था विकास,पर लगता है महाकाल पर भरोसा नहीं था। वरना वो दौड़ता नहीं तो जीवन छोड़ता नहीं और अपनी कहानी में अंतिम पृष्ठ जोड़ता नहीं,पर विकास न गिरता तो कईं और नीचे गिर जाते। विकास जिस रफ्तार से आगे बढ़ा था वो किस्सा किसी सफल फिल्म से कम नहीं था। बहुत ही रस आ रहा था विकास की गाथा को पढ़ने में,पर विकास की गाथा में विनाश ही विनाश का विकास था। सफेद,लाल,भगवा,खाकी सारे रंग विकास के रंग में रंगे थे। विकास का होना इन सब रंगों को बदरंग कर सकता था। बस,यही एक भय विकास के विनाश का कारण बन गया। विकास गया तो गया,पर चंदू भैया का शुक्रवार का अखबार रद्दी कर गया…और शनिवार को ताजा समाचार की जगह सत्यकथा पढ़ने को मजबूर कर गया।

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