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युद्ध

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं,
अवांछित बयान भी आ रहे हैं।

मानवता सिसकियां ले रही है,
द्रोही सिर्फ सड़ांध फैला रहे हैं।

हम कई मोर्चों पे लड़ रहे हैं,
छिपे नाग विष उगल रहे हैं।

जन दायित्व अब बढ़ गया है,
जंग में वो चीन संग मचल रहे हैं।

गलवान चीनी गले की फाँस है,
शांति की नहीं जल्दी आस है।

पाक,चीन व नेपाल की तिकड़ी है,
तीनों अपनी अपनी जगह अकड़ी हैं।

ऊपर से ‘कोरोना’ का बढ़ता कहर है,
विपक्ष फैला रहा देशद्रोही लहर है।

वीरों का ये बलिदान अतुल्य है,
सैनिकों की विजय बहुमूल्य है।

हमारे हर भू-भाग सिर्फ हमारे हैं,
ये सब हमें हमारी जान से प्यारे हैं॥

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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