मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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समुद्र से बढ़कर हैं,
जो मन की लहरें…
बदलती पल-पल हैं,
जो मन की लहरें।
क्षण में बदल जाती,
सोच यों ही मन की…
कुछ बनती है पल में,
सोच यों ही मन की।
कुछ सोच बिगड़तीं,
जो मन की लहरें…
समुद्र से बढ़कर हैं,
जो मन की लहरें।
इंसान को पता क्या,
कि होना क्या है…
हँसी ढूंढते थे क्यों,
यों रोना भया है।
खेल जिन्दगी का है,
हजारों हुए पहरे।
समुद्र से बढ़ कर हैं,
जो मन की लहरें॥