मानकदास मानिकपुरी ‘ मानक छत्तीसगढ़िया’
महासमुंद(छत्तीसगढ़)
**************************************************
जब यह तन अचल होता है,
तभी मन का भ्रम मिटता है।
वह चमक-दमक वह चिकनी चमड़ी,
सिकुड़ फूलकर बेढंग दिखता हैll
सारे लेप इत्र की खुशबू,
पल-पल तन से दूर हटता है।
तब चूमने वाला होंठ भी,
उल्टी पर उल्टी करता हैll
सत्य समझ आता है उसी दिन,
जब सारा तन गंदा दिखता है।
भीतर हाड़-मांस के लोथड़े,
जीवात्मा को भी अजीब लगता हैll
अंतर्मन से असली सौन्दर्य की कोई,
मन ही मन परिभाषा लिखता है।
कर्म व्यवहार चरित्र है असली सौन्दर्य,
युगों-युगों तक वही टिकता हैll