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अपना घर

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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बहुधा हिंदू समाज में लड़कियों को यह बात घुट्टी में पिला दी जाती है,- “ससुराल ही उनका असली घर है।” मंजरी भी यही घुट्टी पीकर अपने ससुराल आई थी। थोड़े दिन बाद उसने अपने पति से पूछा,-“मेरा घर कहां है ?” कौशल ने उसे समझाते हुए कहा,-“मेरा नहीं,हमारा घर। यह हम दोनों का ही नहीं,हम सभी का घर है। पगली कहीं की ?”
पता नहीं क्या,उल्टा-सीधा सोचती रहती है। और मंजरी आश्वस्त हो गई। दिन अच्छे गुजर रहे थे। बच्चों की शादी हो चुकी थी। एक दिन कौशल को हार्ट-अटैक आया और वह इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गया। अब रह गई मंजरी और उसकी बूढ़ी सास। सास ने अपने तेवर दिखाना शुरू किए,-“तू क्या दहेज में लाई थी ? जो तेरा घर है ? खा गई मेरे बेटे को अब क्या मुझे खाएगी ?”
रात-दिन कलेश। सास ने ननद के बच्चों को बुला लिया। मंजरी सोती तो बच्चे कभी टी.वी. चलाते,धमा-चौकड़ी मचाते,मंजरी मना करती तो कहते ,”टी.वी. हमारे मामा जी का है। हम तो देखेंगे। यह घर हमारी नानी का है। तुम्हारा नहीं।”
मंजरी बहुत परेशान हो गई,सारा दिन काम भी करो फिर भी खिच-खिच चिक-चिक।
एक दिन मंजरी की लड़की मनीषा आई,और वह जबरदस्ती उसे अपने साथ जयपुर ले गई। मंजरी वहां खुश थी फिर एक दिन बोली,-“बस बहुत दिन हो गए,अब मैं अपने घर जाऊंगी।”
मनीषा माँ का हाथ पकड़ कर बोली,-“कैसा अपना घर ? जहां लोग तुम्हें ठीक से खाने नहीं देते,दिनभर घर का काम करती रहती हो। बीमार होने पर तुमसे कोई पानी का भी नहीं पूछता ? घर दादी के नाम है। पापा ने तुम्हारे नाम तो किया नहीं। दादी तो तुम्हें निकालना चाहती है। अब कौन-सा अपना घर ?”
मनीषा माँ को एक कमरे में लेकर गई,फिर बोली,-“यह तुम्हारा घर है। यहां रहिये। घर ईंट-पत्थर का नहीं होता। घर शांति,अपनापन,प्यार और विश्वास से होता है। जहां व्यक्ति सुकून से रहे,वही घर है। चाहे छोटा हो या बड़ा।”
मंजरी ने मनीषा के दोनों हाथ थाम लिए। उसकी आँखें छलछला उठी। उसे मनीषा पर गर्व होने लगा और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी ईश्वर,सभी को ऐसी बेटी दे।

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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