राजेश पुरोहित
झालावाड़(राजस्थान)
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लेकर हल काँधे पर निकल गए भूमिपुत्र सारे,
खुशियों को बांटने चले आये आषाढ़ के बादल।
माटी की सौंधी-सौंधी महक से झूम उठे खेत,
भूमिपुत्रों को मनाने आ गए आषाढ़ के बादल।
ये इंद्रधनुषी सपनों को उम्मीदों के पंख लगाने,
फिर उमड़-घुमड़ कर आ गए आषाढ़ के बादल।
कूप बावड़ी ताल तलैया सारे भर गए खुशी से,
दूर-दूर से लेकर पानी छा गए आषाढ़ के बादल।
खुरपी फावड़े हसिया लेकर चली गांव की गौरी,
फुहारों का मजा लुटाने आ गए आषाढ़ के बादल।
रिमझिम-रिमझिम बारिश में पकौड़ी बनने लगी,
कढ़ाई का स्वाद चखने आ गए आषाढ़ के बादल।
तोता मोर पपीहे कोयल शोर मचाये मिलकर सारे,
बागों में हरियाली करने आ गए आषाढ़ के बादल।
कागज़ की कश्ती बनाने रंग बिरंगे ख्वाब सजाने,
झूम-झूम कर खूब बरसने आ गए आषाढ़ के बादल॥