कुल पृष्ठ दर्शन : 490

आषाढ़ के बादल

राजेश पुरोहित
झालावाड़(राजस्थान)
****************************************************

लेकर हल काँधे पर निकल गए भूमिपुत्र सारे,
खुशियों को बांटने चले आये आषाढ़ के बादल।

माटी की सौंधी-सौंधी महक से झूम उठे खेत,
भूमिपुत्रों को मनाने आ गए आषाढ़ के बादल।

ये इंद्रधनुषी सपनों को उम्मीदों के पंख लगाने,
फिर उमड़-घुमड़ कर आ गए आषाढ़ के बादल।

कूप बावड़ी ताल तलैया सारे भर गए खुशी से,
दूर-दूर से लेकर पानी छा गए आषाढ़ के बादल।

खुरपी फावड़े हसिया लेकर चली गांव की गौरी,
फुहारों का मजा लुटाने आ गए आषाढ़ के बादल।

रिमझिम-रिमझिम बारिश में पकौड़ी बनने लगी,
कढ़ाई का स्वाद चखने आ गए आषाढ़ के बादल।

तोता मोर पपीहे कोयल शोर मचाये मिलकर सारे,
बागों में हरियाली करने आ गए आषाढ़ के बादल।

कागज़ की कश्ती बनाने रंग बिरंगे ख्वाब सजाने,
झूम-झूम कर खूब बरसने आ गए आषाढ़ के बादल॥

Leave a Reply