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आस्तित्व के लिए संघर्ष जारी रखें महिलाएँ

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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अस्तित्व बनाम नारी (महिला दिवस विशेष)…

‘निर्भया’ कांड के बाद से वर्तमान समय में ऐसा सैलाब उमड़ पड़ा है कि, नारी सुरक्षा को लेकर हर शहर-गाँव में महिलाओं के प्रति जनजागरण किया गया और सामाजिक बुराइयों के प्रति सभी एकसाथ आगे आए। नारी शक्ति व सुरक्षा के लिए कई कानून बने और सख्त रवैए के चलते लड़कियाँ, महिलाएँ और छोटी बच्चियाँ आत्मरक्षा करना सीखने लगी। अच्छा-गलत समझने लगी, जो सुरक्षा की दृष्टि से अच्छी पहल है। कुछ हद तक इससे जागरूकता आई भी, पर आस्तित्व की लड़ाई अभी बहुत लम्बी है, जिसे हर महिला को जारी रखना होगा। आजादी के बाद से अशिक्षित समाज वाली स्थितियों ने उनके पंखों को उड़ान नहीं दी तो वह धरातल पर अपनी जमीन तलाश करते हुए आगे बड़ी। पहले खुद शिक्षा के मंदिर में गई, फिर अपने परिवार को भी शिक्षा के महत्व को नारी शक्ति ने ही समझाने की जिम्मेदारी निभाई, पर पुरानी-रूढ़िवादी सोंच रखने वाले लोगों ने महिला को समान रूप से अधिकार नहीं दिया, जिसके कारण अबला नारी को घरों की चारदिवारी में क़ैद रखा गया, किन्तु उसमें भी महिला हारी नहीं। वह आगे बढ़ती रही, अपनी भूमिका की तलाश में। बदलाव के इस दौर में फिर वह पुरुष प्रधान समाज में कदमताल मिलाती हुई संघर्ष करती रही, यही कहानी उस शक्ति स्वरूपा की रही।

आज इस आधुनिक युग में महिला पढ़ाई, नौकरी, समाज सेवा, धार्मिकता के ज्ञान- विज्ञान में अपनी पैठ बना रहीं है। कुल मिलाकर हर एक क्षेत्र में लोहा मनवा रही है। नारी शक्ति की वह लड़ाई, जो जमीनी हकीकत से शुरू हुई थी, अब समान हक पर पहुंच गई है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में महिला अपना सर्वोत्तम दुनिया को दे रही है, तो भारतीय महिलाओं के प्रति अब हमारी सोंच बदलना ही चहिए। तभी नकारात्मक सोंच रखने वाले लोगों का अंत होगा। जो समाज में रहते हुए आज भी लड़कियों- महिलाओं को खिलौना समझते हैं, उन्हें महिलाएँ खुद सबक सिखाएं, क्योंकि यह भी अस्तित्व की लड़ाई का एक पहलू है। जिस देश में बच्चियों को पूजा जाता है, उसी देश में राक्षस प्रवृत्ति के पागल लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कार पर कालिख पोत देते हैं, जब जरा-जरा-सी मासूम बच्चियों को हवस का शिकार बना लेते हैं। ऐसे लोगों का सामाजिक स्तर पर बहिष्कार होना ही चाहिए। हाल ही में एक भेड़ चाल चल रही है कि, लोगों की नजरों में गंदगी फैली हुई है। वह उपदेश देते हैं कि, लड़कियों को कैसे कपड़े पहनना चाहिए, कैसे नहीं ? कपड़ों में बुराई देखने वालों को अपने आत्मचिंतन की भी आवश्यकता है, जो हर समय महिलाओं की गलतियों का गुणगान करते हैं। सवाल यह है कि, सामाजिक स्तर पर संयुक्त रुप से गंदी सोच व नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों के प्रति ठोस व कारगर कार्रवाई कब होगी ? नहीं तो बार-बार ऐसी कई घटनाएं होती रहेगी। आखिर कब तक नारी शक्ति का अनादर होता रहेगा ?
हाल ही में स्पेन की १ महिला व १ पुरुष विश्व भ्रमण पर दुनिया के ६५ देशों में अपनी अपनी मोबाईक में घूम रहे थे, पर भारत में उन्हें मानसिक रूप से पीड़ा हुई। कुछ लोगों के कारण पूरा देश बदनाम हो गया। महिलाओं की सुरक्षा के प्रति फिर सवालिया निशान देश में पैदा हो रहे हैं। आखिर इतनी बड़ी-बड़ी बातें महिला सुरक्षा पर की जाती है, उसके बाद कानून भी बने और नारी शक्ति पर अच्छाई की बातें हुई, तो फिर भी धरातल पर रात में महिलाओं का निकलना वर्तमान में सुरक्षित क्यों नहीं है। कुछ नकारात्मक सोच वाले लोगों के कारण अब भी बहुत गंभीर व गलत बातें होती हैं, क्योंकि भेड़िए नजरें गड़ाए बैठे होते हैं।

झारखंड में विदेशी महिला के साथ ७ युवाओं ने दुष्कर्म किया, पर उस नारी ने हौंसला नहीं छोड़ा। थाने पहुंच कर एफआईआर दर्ज कराई और मेडिकल के लिए जाँच हेतु अस्पताल भी गई। उस महिला के जज्बे को हम सभी सलाम करते हैं। इस घटना में सामाजिक बुराईयों के प्रति सजग होकर आवाज उठाने के लिए इन्होंने नारी शक्ति को संदेश दिया कि, नारी कमजोर नहीं है तथा किसी से कम भी नहीं। समाज में पनप रहे राक्षस प्रवृत्ति के लोग इस तरह महिलाओं पर घात नहीं करे, इस के लिए समाज को चिंतन करना चाहिए। नापाक हरकत करने वाला युवा वर्ग हो या पुरूष समाज, सभी की महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच होनी चाहिए, तभी नारी शक्ति को सम्मान मिल पाएगा। सोंच बदलेगी, तो खुशहाल जीवन में महिला-पुरूष दोनों अपनी अपनी भूमिका में एकसाथ मिलकर शिव-शक्ति के रुप में प्रेरणादाई होंगे। इसके लिए स्त्री को इस संघर्ष को जारी रखना होगा।